
देश के कुछ भागों में नक्सली जिस तरह से तांडव मचा रहे हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई में जिस तरह सरकार लाचार नजर आ रही है उससे यही लग रहा है वह दिन जल्द आ सकता है जब देश के सामने वैसी ही स्थिति होगी जैसी कि तालिबान ने पाकिस्तान में कर रखी है। नक्सलियों को भारत के तालिबान और भारत के तालिबान को 'जालिमान' कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि दोनों ने कत्लेआम मचाया हुआ है। भले ही इसके पीछे उनके जो भी तर्क हों लेकिन हिंसा के आगे वह सभी खारिज हो जाते हैं। नक्सलियों ने हालिया वारदात छत्ताीसगढ़ में की। वहां के राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने पुलिस अधीक्षक समेत 30 जवानों की हत्या कर एक बार फिर राज्य में अपनी मजबूत स्थिति का अहसास कराया। नक्सलियों ने अब तक के सबसे बड़े हमले में पहली बार किसी पुलिस अधीक्षक की हत्या की है। वहीं राज्य में नक्सलियों ने पिछले साढ़े चार सालों में लगभग 1300 लोगों की हत्या की है जिसमें पुलिसकर्मी, विशेष पुलिस अधिकारी और आम नागरिक शामिल हैं। छत्ताीसगढ़ के वन्य क्षेत्रों में करीब तीन दशक पहले शुरू हुआ नक्सलियों का आंदोलन आज इस राज्य के लिए नासूर बन गया है। नक्सलियों के लगातार बढ़ते हमले और इसमें मरने वाले पुलिस जवानों और आम आदमी की संख्या से राज्य में नक्सल समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। राज्य में पिछले साढ़े चार सालों में नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया है और इस समस्या के कारण 1296 पुलिसकर्मियों, विशेष पुलिस अधिकारियों और आम नागरिकों की मृत्यु हुई है। इस आंकड़े में मारे गए गोपनीय सैनिक या सरकारी कर्मचारी शामिल नहीं हैं।
इससे पहले माओवादियों और नक्सलियों ने पश्चिम बंगाल के लालगढ़ पर कब्जा कर एक तरह से प्रशासन को चुनौती दी थी। वहां मामला चूंकि राजनीति से जुड़ा था इसलिए इस पर फौरी कार्रवाई हुई। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में वाममोर्चा को घेरने के लिए कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते इसलिए जब राज्य सरकार ने इस मामले में ढिलाई बरती तो केंद्र ने सख्ती दिखाई और उसके आदेश पर राज्य सरकार को माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई को विवश होना ही पड़ा। आखिरकार सुरक्षाबलों ने लालगढ़ को मुक्त करा लिया। इसके अलावा लोकसभा चुनावों के दौरान झारखंड, आंध्र प्रदेश, छत्ताीसगढ़, पश्चिम बंगाल और बिहार में नक्सलियों ने खूब कहर बरपाया। चुनावों के दौरान जो हिंसा कभी बूथ लुटेरे करते थे वह अब नक्सली करने लगे हैं।
कई बार खबरों में यह देखने-सुनने को मिलता रहा है कि नक्सलियों के साथ नेताओं के संबंध हैं और उनका राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता रहा है। ऐसे में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के परिणामों को लेकर संशय होना लाजिमी है। नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर केंद्रीय स्तर पर रणनीति बनाई जानी चाहिए जिसमें नक्सल प्रभावित राज्यों को विश्वास में लेकर संयुक्त कार्रवाई की जाए तो परिणाम अच्छे निकल सकते हैं। लेकिन देखना यह है कि सरकार इस समस्या की ओर गंभीर कब होती है?
बहरहाल, छत्ताीसगढ़ में नक्सली हमले में शहीद हुए सभी पुलिसकर्मियों को श्रध्दांजलि अर्पित करते हुए भगवान से कामना करता हूं कि उनके परिजनों को इतना बल प्रदान करे कि वह इस अपार दु:ख को सहन कर सकें और उनके जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आए।
नीरज कुमार दुबे





1 comment:
बिलकुल सही कहा आपने....
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