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Tuesday 24 February, 2009

26/11: टेप से खुली आईएसआई की पोल

मुंबई हमलों के मामले में आज तक ने एक बड़ा खुलासा किया है। हमलों के दौरान आतंकियों और पाकिस्‍तान में बैठे उनके आकाओं के बीच हो रही बातचीत का टेप आज तक के हाथ लगा है. इस टेप में रिकॉर्ड बातचीत से साफ पता चलता है कि मुंबई के हमलावरों को पाकिस्‍तान से सारे निर्देश दिए जा रहे थे. ये रिकार्डिंग करीब सात घंटे की है, जिससे ये बिल्कुल साफ हो जाता है कि मुंबई हमले की साजिश रचने वाले आकाओं की सैनिक कुशलता कितनी ज्यादा थी और इस हमले के लिए उन्होंने कितनी बड़ी तैयारी की थी.

मुंबई के आतंकवादियों के फोन चौबीसों घंटे पाकिस्तान में आतंक के वार रूम से जुड़े रहे। पाकिस्तान से कैसे खेला गया आतंक का खूनी खेल, पल-पल कैसे और किसने दी आतंकियों को कमांड, पहली बार आप खुद सुनें अपने कानों से आतंक के खौफनाक टेप. आतंक के वार रूम में बैठे आकाओं के पास नरीमन हाउस, ताज और ट्राइडेंट का पूरा खाका मौजूद था और इसी बिनाह पर पाकिस्तान में बैठे आतंक के आका मुंबई में मोर्चा लिए हर आतंकवादी को ये तक बता रहे थे कि उन्हें कब छुपना है और कब सामने आना है, कब ग्रेनेड फेंकने हैं, कब गोलियां चलानी हैं और कब आग लगानी है.

मुँबई में मोर्चा आतंकवादियों को लेना था। लेकिन उनकी पोजीशन क्या होगी ये सरहद पर पाक में बैठे मास्टरमाइंड तय कर रहे थे. वो बता रहे थे कि कैसे एक को सीढ़ियां कवर करनी है और दूसरे को क्रॉस फायरिंग के लिए पोजीशन बदलनी है. वो बता रहे थे कि किस तरह दीवार से चिपक कर खड़े होने पर ग्रेनेड फटने की सूरत में जान को खतरा हो सकता है. जाहिर है एक-एक कोने की खूबियों और कमियों से वो अच्छी तरह वाकिफ थे. ऐसी कमांड सिर्फ वही लोग दे सकते हैं जो या तो खुद आर्मी की ट्रेनिंग ले चुके हों और ऐसी सैनिक कार्रवाइयों का जिन्हें अच्छा-खासा अनुभव हो। सवाल उठता है कि आतंकवादियों के मास्टरमाइंड कहीं वो लोग तो नहीं जिनका पाक सेना से कभी कोई रिश्ता रहा हो.

दुनिया में आतंकवादी हमले का ये पहला ऐसा मामला होगा जिसमें आतंकवादियों को एक दूसरे मुल्क में बैठे उनके आका लाइव कमांड दे रहे थे। कमांड पाकिस्तान से मिल रहा था और ऑपरेशन मुंबई में चल रहा था. मुंबई हमले के दौरान आतंकवादियों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी ताज को बर्बाद करने में थी. पाकिस्तान में बैठे आतंक के आका बार-बार एक ही बात पर जोर दे रहे थे कि पूरे ताज को आग के हवाले कर दो. ताज में छुपे आतंकवादियों को शायद उर्दू ठीक से नहीं आती थी, इसीलिए वो लगातार पंजाबी में बात कर रहे थे.

ताज का मंजर हंगामाखेज था। ताज में चार आतंकी दाखिल हुए। एक घंटे तक कत्लेआम मचाने के बाद आतंकियों ने ताज के कमरा नंबर 632 में अपना ठिकाना बना लिया. दो आतंकवादी इस कमरे में ही रहे जबकि दो किसी और माकूल ठिकाने की तलाश में ताज के गलियारों में निकल पड़े. लेकिन रिमोट कंट्रोल पाक में बैठे आकाओं के हाथ में था जो फोन पर ही रणनीति बना रहे थे. पेश है ताज में घुसे आतंकियों और उनके आकाओं की बातचीत के अंश:

आका: आप अपना ख्याल रखाना, सीढ़ियां कवर हैं या नहीं? नीचे से कोई ऊपर न आए।
'आतंकी: कुछ भी कवर नहीं है। हम तो बहुत ऊपर बैठे हैं, वो दोनों पता नहीं कहां चले गए हैं?
आका: मेरा भाई, सीढ़ियां जरूर कवर करो, अगर वो ऊपर आ गए तो आपका ऊपर कमरे में बैठने का कोई फायदा नहीं। हॉलनुमा कमरा देखना था.
आतंकी: मैंने बहुत कहा, वो आ ही नहीं रहे हैं। मैं उन्हें बार-बार कह रहा हूं.
आका: उन्होंने दूसरी तरफ पोजिशन ले ली होगी। वो गए कहां हैं? कितनी दूर गए हैं?
आतंकी: उन्हें तो नजदीक ही भेजा था, अब दूर चले गए होंगे।आका: नीचे तो नहीं गए क्या?
आतंकी: नहीं उन्हें मालूम है कि नीचे काम शुरू हो गया है। अब पता नहीं.
आका: ग्रेनेड है आपके पास? ग्रेनेड बेशक नीचे फेंको। ग्रेनेड अच्छा भला वफा करता है. एक ग्रेनेड फेंकते हो तो वो 15-20 मिनट सोचते हैं कि आगे बढ़ें कि नहीं.
आतंकी: अच्छा एक ग्रेनेड फेंकता हूं।

रणनीति का अहम हिस्सा था आतंकियों को मोर्चा लेने के पैंतरे बताना और आका ये काम कुछ इस अंदाज में कर रहे थे.
आका: ऊपर कमरों को आग लगा दो, जो कमरे खाली करोगो, आग लगा देना मेरे भाई। आपने पता है क्या काम करना है. उन्हें नीचे लेकर आना है, पुलिस है नीचे, नीचे पूरा पहरा दो, मैंने कहा था कि हर 15 -20 मिनट बाद ग्रेनेड फेंक दिया करो, वो फेंक रहे हो ना?
आतंकी: ठीक है अब ऊपर से आते समय सरप्रराइज देकर आएंगे, दरवाजा एंट्री बड़ी जबरदस्त है, शीशे बहुत बड़े-बड़े हैं।
आका: शीशे तोड़ दो।आतंकी: नहीं-नहीं कमरा स्ट्रॉंग होल्ड के लिए है.
आका: हां, स्ट्रॉंग होल्ड के लिए ढूंढ लिया क्या?आतंकी: बड़ा बेहतरीन कमरा है। वैसे महफूज है, डबल-डबल किचन है, बाथ है, एक छोटा सा बाज़ार लगता है.
आका: यहां पानी है क्या?
आतंकी: हां।पाक: पानी की बाल्टी अपने पास रखनी है. तौलिया और पानी की बाल्टी अपने पास रखनी है. आंसू गैस के जो गोले पुलिस वाले मारेंगे तो पानी और तौलिये ने आपका बचाव करना है.

पाकिस्तान में बैठे आका बार-बार समझा रहे थे कि ग्रेनेड को कैसे और कब इस्तेमाल करना है और इधर आतंकी भी मिनट-दर-मिनट का हाल आकाओं को बता रहे थे।

आका: पोजिशन बदलो, पोजिशन बदलो, इकट्ठे मत बैठो पोजिशन बदलो। जहां से वो आ रहे हैं वहां ग्रेनेड फेंको.
आतंकी: सोहैब ने फायर किया तो वो पीछे भाग गए हैं।
आका: अच्छा मेरे भाई। चारों इकट्ठे न बैठो, फैल जाओ ताकि कोई भी ऊपर आएगा तो एक पोजिशन को कवर करेगा तो तीन जगह से फायर खाएगा भी ना.
आतंकी: फिर हम साथ वाले कमरे में चले जाएं क्या ?
आका: अच्छा, साथ वाला है? सामने कोई नहीं है क्या?
आतंकी: नहीं-नहीं। फिर तो हम ही आमने-सामने हो जाएंगे.

पूरी बातचीत से साफ है कि ताज के अंदर आतंकी थे और सीमापार उनके हुक्मरान। यानी मुंबई के हमलावरों की डोर पाकिस्तान के कंट्रोल रूम में थी. फोन पर ही वो मुंबई में सब कुछ करा रहे थे जो वो चाहते थे.

आपस में वो जिस तरह बातचीत कर रहे थे उससे साफ जाहिर है कि एक खास टीम आतंकवादियों को कमांड देने के काम में लगी थी। ठीक वैसे ही जैसे जंग के वक्त सेना के आला अफसर बैठकर रणनीति बनाते हैं और फौज के दस्तों को आगे की रणनीति बताते हैं। यही हो रहा था मुंबई हमलों के दौरान. पर सवाल ये कि आतंकवादियों के वार रूम की कमान किसके हाथों में थी? आतंक के वार रूम में कितने लोग थे? और वो कौन थे? इन तमाम सवालों के जवाब पाकिस्तान ने अब तक नहीं दिए हैं.

तारीख 27 नवंबर, वक्त रात एक बज कर चार मिनट, जगह होटल ताज

ऑपरेशन बेशक मुंबई में चल रहा था लेकिन उसका रिमोट कंट्रोल था पाकिस्तान में. मुंबई में छुपे आतंकवादी पाकिस्तान में बैठे अपने कमांडरों को एक-एक पल की खबर दे रहे थे और उसी के आदार पर पाक कमांडर बना रहे थे आगे की रणनीति।

पाक: आपको बताया था कि कमरे में कैमरे लगे हैं, आप लाइट बंद कर दो, सारे बटन बंद कर दो, जहां भी कैमरा दिखाई पड़े फायर मार दो। इन सब चीज़ों का ख़्याल रखो मेरा वीर. ये सब चीजें आपको एक्सपोज़ करने वाली हैं, कि आप कितने आदमी हो, कहां हो, किस हालत में हो, आपकी सारी सिक्यूरिटी बाहर आती है.
ताज: हमें पता नहीं चल रहा है कि कैमरे कहां हैं? कहां नहीं हैं?
पाक: क्यों नहीं नज़र आता है? ऊपर क्या लगा है? लाइट लगी है ना? लाइट के अलावा क्या है?
ताज: मसलन लाइटें लगी हैं। पता नहीं किस-किस चीज़ का बटन है?

दरअसल मुंबई पुलिस और कमांडो आतंकवादियों का लोकेशन पता करने के लिए होटल के सीसीटीवी का इस्तेमाल कर रहे थे. वहां से पुलिस कंट्रोल रूम को खबर मिली कि आतंकवादी होटल की छठी मंजिल के कमरा नंबर 632 में हैं. लेकिन पाकिस्तान के आतंकी वार रूम तक खबर पहुंची कि वो कमरा नंबर 360 या 361 में हैं. आकाओं को लगा कि उनके मोहरे फंस रहे हैं, बस इसीलिए उन्होंने फौरन सीसीटी कैमरों को नष्ट करने का हुक्म दिया और साथ ही होटल को आग के हवाले करने का फरमान दे दिया.

ताज: हर साइड पर बड़े-बड़े कम्प्यूटर पड़े हैं। 22-22 30-30 इंच के कम्प्यूटर पड़े हैं.
पाक: उनको जलाया नहीं?
ताज: बस हम अभी आग लगाने लगे हैं। इंशाअल्लाह देखना अब थोड़ी देर बाद ही आपको आग नज़र आएगी.
पाक: आग हमें यहां तक नजर आए तभी तो है। शोले उठते नज़र आएं.
ताज: अभी थोड़ी देर में ही आपको नज़र आएगी आग लगी हुई।
ताज: बात सुनो, दो भाई गए हैं समंदर वाली साइड की तरफ कमरा खोलने के लिए। जब खोल लेंगे तो फिर हम इस कमरे को आग लगा के उधर आ जाते हैं.
पाक: अच्छा आग लगादो मेरे वीर, लेट न करो।
ताज: कमरा एक ही है हमारे पास. अगर आग लगा दी तो हम कहां जाएंगे
पाक: अच्छा आप सबसे ऊपरी मंजिल पर हो? गली में जो कालीन पड़े हैं पर्दे भी, उनको आग लगा दो दूसरी तरफ जाकर।
ताज: वही बताया न। दूसरे भाई आते हैं तो आग लगाते हैं.
पाक: बहुत लेट हो जाओगे। ग्रेनेड भी नहीं फेंका है. कितनी देर लगती है ग्रेनेड फेंकने में? नीचे बहुत गाड़ियां खड़ी हैं.
ताज: दोनों को बार-बार भेज रहा हूं। वो फेंकते ही नहीं, ऐसे ही वापस आ जाते हैं. पता नहीं क्या कर रहे हैं? वो कहते हैं कि फेंकते हैं पर फेंकते नहीं.
पाक: ग्रेनेड फेंकना कौन सा बड़ा काम है? पिन खींचों और नीचे फेंक दो।
ताज: जो हमने डिब्बा फेंका है ना उससे सारे होटल में धूंआ ही धूंआ हो गया है।
पाक: तो फिर क्या हुआ? उससे परेशान नहीं होना है। जो कुछ होना था, वो हो गया. थोड़ी देर में वो खत्म हो जाएगा. आप अपना काम जारी रखो.
ताज: ठीक है।
पाक: फोन जब भी करेंगे, तब अटेंड करना है। आग वाले काम में देर नहीं करनी.
ताज: आग अभी लग जाएगी इंशाहअल्लाह।

पाकिस्तान के वार रूम से कमांड देने वाले लोग कौन थे? वार रूम से जब भी मुंबई में आतंकवादियों के पास फोन आता तो उधर से ज्यादातर तीन ही लोग बात किया करते थे। जुंदल, वसी और काफा. मुंबई में मोर्चा लिए आतंकवादी हर बार बातचीत के दौरान भी सिर्फ इन्हीं के नाम ले रहे थे. हां, बीच में दो-चार बार एक बुजुर्ग का भी जिक्र आता है और जिस तरह से इस बुजुर्ग का जिक्र आता है या जिस तरीके से वो ज्यादातर खामोश रहता है उससे ऐसा लगता है कि वार रूम में बैठे आतंक के आकाओं में उसका कद सबसे बड़ा था. पर ये चारों कौन थे और क्या ये उनके असली नाम थे या कोड नेम. फिलहाल इसका जवाब पाकिस्तान ने नहीं दिया है. वैसे इस पूरी बातचीत की एक और अहम बात ये है कि फोन हर बार वार रूम से ही किया जाता था. मुंबई आए आतंकवादियों ने अपनी तरफ से एक भी कॉल उन्हें नहीं किया था. शायद ये भी उनकी साजिश का एक हिस्सा था.

आज तक.com से साभार
नीरज कुमार दुबे

Tuesday 17 February, 2009

अब... तालिबान से बचो!


पाकिस्तान से संचालित हो रहा आतंकवाद न केवल क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा कर रहा है। आतंकवाद के इस नये खतरे पर रोक लगाना पाकिस्तान के वश की बात नहीं है क्योंकि वहां के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी खुद कह चुके हैं कि तालिबान पाकिस्तान पर कब्जा करना चाहता है। इस समय भारत, अमेरिका और शेष अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस नये खतरे की गंभीरता समझने की और खतरे को खत्म करने के लिए और कदम उठाने की जरूरत है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए विशेष अमेरिकी प्रतिनिधि रिचर्ड होलब्रूक ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा है कि पाकिस्तान से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा तालिबान पाकिस्तान के साथ-साथ भारत और अमेरिका के लिए भी समान खतरा पैदा कर रहा है। होलब्रूक ने कहा कि 60 साल में पहली बार भारत, पाकिस्तान और अमेरिका सभी एक ही शत्रु का सामना कर रहे हैं।

पाकिस्तान सरकार ने तालिबान के आतंक से बचने के लिए उसके साथ पिछले साल मई में एक शांति समझौता किया था लेकिन कुछ ही महीनों में यह टूट गया। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उग्रवादियों ने फिर संगठित होने के लिए शांति समझौते का इस्तेमाल किया। होलब्रूक ने अपनी हाल की पाकिस्तान यात्रा के बारे में बताया कि जब मैं कबायली इलाकों में था तो मैं स्वात नहीं गया लेकिन मैं पेशावर गया। मैंने स्वात की जनता से बातचीत की तो वे वास्तव में आतंकित दिखे। उन्होंने कहा कि स्वात ने पाकिस्तान के लोगों पर हकीकत में और गहराई से असर डाला है और ऐसा केवल पेशावर में ही नहीं बल्कि लाहौर और इस्लामाबाद में भी है।

ंइस्लामाबाद से केवल 160 किलोमीटर दूर स्थित स्वात में वस्तुत: तालिबान का नियंत्रण है जिसने पाकिस्तानी सेना को मुश्किल समय में डाल दिया है और अपने उग्रवादियों की रिहाई के लिए उसने विदेशियों सहित अनेक लोगों का अपहरण किया है। अभी हाल ही में खबर आई कि एक चीनी अधिकारी को छुड़वाने के लिए पाक ने कई तालिबानियों को छोड़ा था।

लग तो यही रहा है कि तालिबान पाक पर अपना शिंकजा कसता जा रहा है क्योंकि तालिबान के आगे झुकते हुए पाकिस्तान सरकार ने स्वात घाटी समेत उत्तार पश्चिमी फ्रंटियर प्रान्त के हिस्सों में शरीयत कानून लागू करने की मांग मान ली है। आतंकवादियों के साथ शांति समझौतों के अमेरिका द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद प्रान्त की सरकार और तहरीक ए निफाज ए शरीया मोहम्मदी (टीएनएसएम) के बीच एक समझौते पर दस्तखत किए गए। इस करार के तहत शरीयत या इस्लामी कानून के खिलाफ जाने वाले सभी नियम कायदों को खत्म कर दिया गया है और इस बात पर सहमति बनी है कि इलाके में सैनिक मौजूद रहेंगे और सिर्फ हमला किए जाने पर ही कार्रवाई करेंगे। देश और फ्रंटियर प्रान्त की सरकारें क्षेत्र में इस्लामी कानूनों पर अमल की निगरानी करेंगी। यह घोषणा स्वात घाटी में आतंक फैला रहे तालिबान की ओर से 10 दिवसीय संघर्षविराम के एलान के बाद की गई है। इससे पहले आतंकवादियों के साथ किए गए अनेक समझौते नाकाम साबित हो चुके है और अमेरिका ने ऐसे करार को दहशतगर्दों को फिर से एकजुट होने का मौका मानते हुए उनकी आलोचना की थी।

लोकतंत्र की दुहाई देने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी की इस समझौते पर यह प्रतिक्रिया अचरज भरी लगी कि स्वात में हुआ समझौता मुल्क के लिए फायदेमंद होगा। गिलानी ने कहा कि उनकी सरकार का मानना है कि आतंकवाद से निपटने के लिए सेना का इस्तेमाल एकमात्र विकल्प नहीं है।

उल्लेखनीय है कि तालिबान आतंकवादी क्षेत्र में शरीयत को बेरहमी से लागू कर रहे हैं। इसकी आड़ में उन्होंने लड़कियों के अनेक स्कूलों को आग के हवाले कर दिया है। साथ ही वे सरकारी इमारतों, अदालतों और सुरक्षा बलों पर भी कई बार हमले कर चुके हैं। इस्लामाबाद से करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित खूबसूरत घाटी स्वात करीब दो साल पहले पर्यटकों का प्रिय प्रिय स्थल थी। खूबसूरत वादियों वाली इस घाटी में अब तालिबान का खौफ छा चुका है। तालिबान नेता फजलुल्ला ने घाटी में शरीयत लागू करने का हिंसक अभियान छेड़ा था जिसे सफलता मिल गई है।

बहरहाल होलब्रूक की इस बात को गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिये कि तालिबान इस समय सबसे बड़ा खतरा है। भारत को अन्य मुद्दों पर गौर करने के साथ ही इस नई मुसीबत से भी पार पाने के लिए रणनीति बनानी चाहिये।

नीरज कुमार दुबे

Friday 13 February, 2009

ना ना करते आखिर इकरार कर बैठे

तमाम आनाकानी के बाद पाकिस्तान ने मुंबई हमलों में अपने नागरिकों की संलिप्तता को आखिरकार स्वीकार कर लिया है। ऐसा उसने हृदय परिवर्तन होने के कारण नहीं बल्कि मजबूरी में किया है। यह मजबूरी अमेरिका द्वारा रोकी गई सहायता और उस पर पड़ रहा अंतरराष्ट्रीय दबाव थी। लेकिन पाकिस्तान या फिर उसके यहां मौजूद भारत विरोधी तत्व अभी इतने भी मजबूर नहीं हुये हैं कि वह भारत पर हमले बंद कर दें।

अमेरिका के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने आशंका जताई है कि पाकिस्तान स्थित संगठन भारत के खिलाफ और हमले कर सकते हैं और कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ सख्त उपाय नहीं करता तब तक उसके भारत के साथ संबंध सुधरने की संभावना कम है और परमाणु युध्द का खतरा बना रहेगा। अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया सेवा के नए निदेशक डेनिस सी. ब्लेयर ने अपनी सालाना जोखिम आकलन रिपोर्ट में कहा कि भारत विरोधी उग्रवादी संगठनों को पाकिस्तान के समर्थन देने की भारत की चिंताएं दूर करने के लिए जब तक पाकिस्तान टिकाऊ, ठोस और सार्थक कदम नहीं उठा लेता तब तक दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता प्रक्रिया नाकाम रहेगी। उन्होंने आशंका जताई कि पाकिस्तान जब तक उसके देश में स्थित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता तब तक भारत के खिलाफ और हमले हो सकते हैं तथा भारत-पाकिस्तान संघर्ष भड़कने का जोखिम बढ़ सकता है। सीनेट की चयन समिति के समक्ष पेश अपनी रिपोर्ट में ब्लेयर ने कहा कि यह मामला विशेषकर नवंबर 2008 के मुंबई के आतंकवादी हमलों के आलोक में है।

भारत ने भी पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति के बाद ज्यादा प्रसन्नता नहीं जताते हुए यह स्पष्ट कर सही कदम उठाया है कि पाकिस्तान से संबंध इसी बात पर निर्भर करेंगे कि उसने मुंबई हमलों के मामले में क्या कार्रवाई की। साथ ही भारत ने पाकिस्तान से यह भी स्पष्ट कहा है कि अब वह तय करे कि वह भारत के साथ कैसे रिश्ते चाहता है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को लोकसभा में मुंबई आतंकवादी हमलों पर अनुवर्ती कार्रवाई के संबंध में अपनी ओर से दिए गए बयान में यह भी साफ किया कि एक दिसंबर 2008 से पाकिस्तान के साथ रुकी समग्र वार्ता के तहत निकट भविष्य में कोई बैठक नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ संबंध के मामले में हम ऐसे मोड़ पर आ गए हैं कि अब पाकिस्तान के अधिकारी स्वयं तय करें कि वे भविष्य में भारत के साथ किस प्रकार का संबंध रखना चाहते हैं। मुखर्जी ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की आम जनता के साथ कोई झगड़ा नहीं है और हम उनके हित कल्याण की कामना करते हैं और हमें नहीं लगता कि इस हालात के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए अथवा उन्हें इसका परिणाम झेलना पड़े।

अभी दो-तीन दिन पहले ही अल कायदा ने भारत को चेतावनी दी थी कि यदि उसने पाकिस्तान के खिलाफ युध्द छेड़ा तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे। इससे साफ है कि अल कायदा को किसकी शह मिल रही है। पाकिस्तान को यदि आगे बढ़ना है तो उसे मन से साफ होना होगा और आतंकवादियों के विरुध्द वाकई लड़ाई छेड़नी होगी। छद्म लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ और असली लड़ाई भारत के खिलाफ की नीति से उसका भला होने वाला नहीं है।

बहरहाल भारत ने मुंबई हमलों में पाकिस्तानी सरजमीन पर आधारित तत्वों की संलिप्तता की पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति और इस संबंध में की गई गिरफ्तारियों को एक सकारात्मक घटनाक्रम करार देते हुए कहा है कि पाकिस्तान की ओर से उठाए गए मुद्दों की जांच करने के बाद जो हो सकेगा उसके साथ साझेदारी करेगा। उम्मीद की जानी चाहिये कि सब कुछ सही दिशा में आगे बढ़ेगा। लेकिन फिर भी भारत सरकार को सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि मीडिया में आ रही रिपोर्टों की मानें तो आतंकवादी बस सही समय के इंतजार में हैं।

नीरज कुमार दुबे

Thursday 5 February, 2009

जब सुर ही एक नहीं तो आतंकवाद से कैसे निबटेंगे?

यह केन्द्रीय स्तर पर कैसी व्यवस्था है कि आतंकवाद के मामले पर सरकार के मंत्री और उसके अधिकारी अलग-अलग सुर अलाप रहे हैं। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने साफ कहा है कि पाकिस्तान ने मुंबई हमलों पर भारत की ओर से उपलब्ध कराये गये दस्तावेजों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने भी स्पष्ट कहा है कि पाकिस्तान ने भारत के दस्तावेजों पर कुछ सवाल भेजे थे जिनका जवाब दे दिया गया है।

नारायणन ने टीवी समाचार चैनल सीएनएन-आईबीएन को दिये एक साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि पाकिस्तान मुंबई के आतंकवादी हमलों पर उसी तरीके से तफ्तीश कर रहा है जैसी किसी जांच एजेंसी को करनी चाहिये। नारायण्ान ने सीएनएन आईबीएन के डेविल्स एडवोकेट कार्यक्रम में करण थापर से कहा- मैं जिस बात से अवगत हूं वह यह है कि सबूतों का दस्तावेज मिलने के बाद पाकिस्तान सरकार ने हमें जवाब दिया और कुछ सवाल पूछे जिनके जवाब हमने मुहैया करा दिए हैं। नारायणन ने कहा था कि जहां तक हमारा सवाल है हमारा मानना है कि पाकिस्तान सच तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है।

यह संयोग ही है कि दोनों ओर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने मुंबई आतंकवादी हमले को लेकर अपनी-अपनी सरकार की मुश्किलें बढ़ाईं। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोहम्मद अली दुर्रानी ने जब यह स्वीकार किया कि मुंबई हमलों में शामिल एकमात्र जीवित गिरफ्तार आतंकवादी अजमल कसाब पाकिस्तानी है तो उन्हें प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने तत्काल बर्खास्त कर दिया। उस दौरान वहां खबरें आईं कि इस बर्खास्तगी के मामले को लेकर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी प्रधानमंत्री से नाराज हैं क्योंकि उनके ध्यान में लाये बिना यह कार्रवाई की गई और इस संबंध में उन्हें मीडिया से ही ज्ञात हुआ। ऐसा ही कुछ भारत में भी हुआ जब यहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत के सबूतों पर जवाब भेजा है। जबकि गृह मंत्री और विदेश मंत्री ने इसके विपरीत बयान दिये। लेकिन दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कार्यालय नारायणन के बचाव में उतर आया और बाकायदा एक विज्ञप्ति जारी कर पीएमओ ने सरकार के कर्ताधर्ताओं के बीच किसी मतभेद को नकारते हुये कहा कि नारायणन के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।
वाकई देश के सामने यह अजीब-सी स्थिति है कि वह किसकी बात पर भरोसा करे? मंत्रियों की बात का या फिर अधिकारियों की बात का। साफ है कि आतंकवाद के खिलाफ पुरजोर तरीके से लड़ने की बात कर रही सरकार में इस लड़ाई को लेकर एकता का अभाव है। वरना एक ही मसले पर सरकार के विभिन्न सुर नहीं होते।
यही नहीं यह भी अजीब-सी स्थिति है कि जो मंत्री कुछ समय पहले तक पाकिस्तान के खिलाफ सभी विकल्प खुले होने की बात कह रहे थे वही अब कह रहे हैं कि भारत के पास इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। गौरतलब है कि विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सोमवार को कहा कि भारत ने अपनी ओर से पाकिस्तान को सबूत पेश कर दिये हैं और उसके जवाब का इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
प्रणव ने कहा- कोई विकल्प नहीं है जबकि रक्षा मंत्री ए।के. एंटनी अभी भी कह रहे हैं कि भारत के सभी विकल्प खुले हैं। लेकिन वह यह नहीं बता रहे कि यह विकल्प कौन से हैं। यदि सभी विकल्प की बात हो रही है तो दो या तीन या फिर उससे भी ज्यादा विकल्प संभव हैं। इनमें से एक तो बता दीजिये सरकार ताकि लोगों को भरोसा हो सके कि आतंकवाद के खिलाफ आपकी लड़ाई सिर्फ कागजी नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जयपुर में एक रैली में कहा कि भारत आतंकवाद को नेस्तनाबूद कर देगा और पड़ोसी देश के मंसूबों को कामयाब नहीं होने देगा। लेकिन उन्होंने यह बताने से गुरेज किया कि उनकी सरकार ने आतंकवाद को रोकने के लिए अब तक क्या किया है। सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों की रोकथाम के लिए पिछले दिनों जिस राष्ट्रीय जांच एजेंसी का गठन किया उसके विस्तार का काम बहुत ही धीमी गति (इस संबंध में दिनांक 4 फरवरी 2009 को नवभारत टाइम्स, दिल्ली ने खबर भी प्रकाशित की है।) से चल रहा है। इसलिए आतंकवाद के खिलाफ जनता को ही जागरूक होना पड़ेगा। याद करिये मुंबई की जनता का वह उदाहरण जिसके दबाव से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री तथा केंद्रीय गृहमंत्री को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। ऐसा ही दबाव संप्रग सरकार पर बनाया जाये ताकि वह चेते और आतंकवाद के खिलाफ वाकई कुछ करके दिखाये। सिर्फ रोज-रोज की बयानबाजी से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
नीरज कुमार दुबे