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Sunday 30 November, 2008

आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता ही शहीदों को सच्ची श्रध्दांजलि होगी




इस वर्ष की शुरुआत उत्तर प्रदेश के रामपुर में सीआरपीएफ के कैम्प पर हुये आतंकवादी हमले से हुई जिसमें कई जवान मारे गये। उसके बाद से देश में कई सिलसिलेवार बम धमाके हुए। पहले राजस्थान, फिर गुजरात, फिर दिल्ली, उसके बाद मालेगांव, मोड्सा, फिर त्रिपुरा, उसके बाद असम और अब मुंबई में आतंकवादी हमला। इन हमलों में आम जनता को तो अपनी जान से हाथ धोना ही पड़ा साथ ही बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की भी जान गई।

यह हमले खुफिया चूक का परिणाम थे यह राजनीतिक कुप्रबंधन के। यह सोचना विश्लेषकों का काम है। मैं तो हर उस सुरक्षा बल के शहीद होने पर गमगीन हो जाता हूं जिसको खुफिया चूकों या फिर कुप्रबंधनों के कारण हुए हमलों में देश की रक्षा करते हुए अपनी शहादत देनी पड़ती है। यह शहादत सिर्फ उस व्यक्ति ने नहीं दी होती। शहादत उनके परिवारों ने भी दी होती है। किसी भी जवान या अधिकारी के शहीद होने पर उन्हें हम उस समय तो सलाम कर देते हैं लेकिन क्या 15 दिन बाद हमें उस शहीद की याद रहती है? क्या हम कभी उसके परिवार की सुध लेने जाते हैं? यही नहीं शहादत देने वालों की शहादत पर राजनीतिक रोटियां भी सेंकी जाती हैं। पिछले दिनों दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का मामला इसका सशक्त उदाहरण है। जिस शख्स ने दिल्ली में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के साजिशकर्ताओं अथवा अंजाम देने वालों से मुठभेड़ के दौरान सीने पर गोली खाई उसकी शहादत पर सवालिया निशान उठाये गये क्या यह सुरक्षा बलों के मनोबल को गिराने का प्रयास नहीं है?

यही नहीं मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में देश ने हेमंत करकरे, अशोक आम्टे, विजय सलास्कर जैसे पुलिस के वरिष्ठ और जांबाज अधिकारी और शशांक शिंदे, प्रमाश मोरे, बापूसाहेब दुरुगड़े, तुकाराम ओंबले, नाना साहेब भोंसले, अरुण चिते, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, एमसी चौधरी और अंबादास पवार जैसे कर्मठ सिपाहियों के साथ ही एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को खो दिया। इसके अलावा 185 लोगों की जानें गईं, सो अलग। कौन है इनका जवाबदेह? क्या गृह मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तथा अन्य अधिकारियों के इस्तीफे इन सबकी जान लौटा सकेंगे? जिस तरह हम इन घटनाओं को अंजाम देने वालों को सजा देने की मांग करते हैं उसी प्रकार ऐसी चूकें करने वालों को भी कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए।

बहुत दिनों से मेरे मन में आतंकवाद के खिलाफ कुछ कर गुजरने की बात चल रही थी। आतंकवादी जब देश के किसी भी हिस्से को छलनी करते हैं तो खून खौल उठता है। भगवान से यही तमन्ना है कि मैं स्वाभाविक या हादसे में मृत्यु का शिकार नहीं बनूं। इन आतंकवादियों से लड़ते हुए ही देश के लिए वीरगति को प्राप्त होऊं। मेरा यह भी मानना है कि आतंकवाद से लड़ना सिर्फ सरकार के बस की बात नहीं है इसके लिए हर भारतीय को एकजुट होना होगा। धर्म, जाति, राजनीति से परे हटकर हमें सोचना होगा कि यदि देश ही नहीं रहेगा तो बाकी सब बातों का क्या महत्व रहेगा। आइये, इस ब्लॉग के जरिये हम आतंकवाद से लड़ने का संकल्प एकजुटता के साथ लें। फिर कोई आतंकवादी भारत माता को कहीं घाव पहुंचाने ना पाये, इसके लिए हम सभी सजग हों। आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता ही शहीदों को सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

भारत माता की जय

नीरज कुमार दुबे