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Thursday 20 February, 2014

राजीव हत्याकांडः यह सजा में रियायत है या सियासत?

राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने का तमिलनाडु सरकार का फैसला ना सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ देश के अभियान पर चोट है बल्कि देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के साथ एक बड़ा अन्याय भी है। इस तरह के फैसलों के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। राजीव गांधी की हत्या देश पर हमला था और देश के हमलावरों को किसी भी सूरत में माफ नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों का कोई मानवाधिकार नहीं होता जिन्होंने अमानवीय और बर्बरतापूर्वक तरीके से किसी की जान ली या उसे क्षति पहुंचाई। हमारे सभी धार्मिक ग्रंथों की कथा-कहानियों में भी दर्शाया गया है कि दैत्यों, राक्षसों के साथ देवताओं ने भी कोई रियायत नहीं बरती। जिस हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शरीर के सभी अंग इधर उधर बिखर गये, उसकी भयावहता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसे में इसे अंजाम देने वालों के साथ रियायत की बात सोची भी नहीं जानी चाहिए। तमिलनाडु सरकार ने कानून के शासन में विश्वास रखने वाले और देशभक्त भारतीयों की आस्था को हिला दिया है। उच्चतम न्यायालय ने इन दोषियों की रिहाई पर रोक लगाकर एकदम सही किया है।


हालांकि इससे पहले भी ऐसे वाकये होते रहे हैं। तमिलनाडु सरकार पूर्व में राजीव हत्या के दोषियों को फांसी की सजा नहीं देने का प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पास करा चुकी है। देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को फांसी की सजा से माफी दिलाने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री सहित कई बड़े नेता पहल कर चुके हैं। उमर अब्दुल्ला के एक ट्वीट के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा में एक विधायक अफजल गुरु को फांसी की सजा से माफी दिलाने संबंधी प्रस्ताव ला चुका है और मदनी को राहत दिलाने की पहल केरल सरकार की ओर से की जा चुकी है।


यह सही है कि फांसी से बचने की दया याचिका पर वर्षों तक फैसला नहीं कर पाने में सरकार यदि ढिलाई बरतती है तो दोषी व्यक्ति राहत की मांग कर सकता है लेकिन यह भी सही है कि फांसी की सजा दुर्लभ मामलों में ही सुनाई जाती है, और फिर यह तो दुर्लभतम मामला था। राष्ट्र यह नहीं भूल सकता कि उसने न सिर्फ अपना प्रधानमंत्री खोया है बल्कि 17 अन्य भारतीय नागरिकों की भी उस हमले में जान गयी। राजीव के हत्यारों की रिहाई का फैसला किसी भी तरह के आतंकवाद से लड़ने और उसे हराने के हमारे सामूहिक राष्ट्रीय संकल्प के सामने भी गंभीर सवाल खड़े करता है। साथ ही यह घटनाक्रम अफजल गुरु के मुद्दे को फिर से जिंदा कर गया है।
जयललिता सरकार अपने इस फैसले के पीछे मानवीय आधार बता रही है जबकि इसके पीछे है पूरी तरह राजनीतिक आधार। उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी एम. करुणानिधि ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राजीव के हत्यारों की रिहाई की मांग क्या कर दी, जयललिता कैबिनेट ने पहले राजनीतिक लाभ लेने के लिए रिहाई का तत्काल फैसला कर इसकी सूचना विधानसभा में दे दी और केंद्र को इस पर अपनी राय देने के लिए तीन दिन का समय निर्धारित कर दिया। लोकसभा चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए राज्य के सभी दलों की निगाहें तमिल मतों पर लगी हुई हैं। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। यदि दोषियों को तमिल होने के नाते छोड़ने की मांग की जा रही है तो यह नहीं भूलना चाहिए कि राजीव जी के साथ मरने वालों में तमिल भी थे। जयललिता को यह याद रखना चाहिए कि इस मामले में जिनकी हत्या हुई है वह एक समय देश की सरकार के संवैधानिक प्रमुख थे। उन्होंने जो फैसला किया है वह भविष्य में दूसरे मुख्यमंत्रियों या संवैधानिक पदाधिकारियों के लिए कानून से परे जाकर निर्णय लेने की मिसाल बन जाएगा। जया सरकार के इस फैसले के चलते केंद्र और राज्य के बीच भी ठन गई है क्योंकि गृह मंत्रालय के मुताबिक सजा को माफ करने का अधिकार भी केंद्र सरकार को ही है, इसलिए राज्य सरकार अपराधियों को जेल से आजाद नहीं कर सकती। यही नहीं जिस मामले की जांच केंद्रीय एजेंसियों ने की और जो मामला केंद्र में चला उस मामले के दोषी को रिहा करने का अधिकार राज्य सरकार को है ही नहीं क्योंकि वह राज्य की जेल में बंद केंद्र के कैदी हैं।


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या जैसे गंभीर अपराध की उपेक्षा भारी पड़ सकती है। यह परिपाटी चल निकली तो कल को कोई सरकार अपने राजनीतिक लाभ के लिए यासीन भटकल या सिमी नेताओं या अन्य आतंकवादियों की रिहाई भी कर सकती है। भारत ने आतंकवाद के खिलाफ जो कड़ा रुख अपना रखा है उसको बरकरार रखे जाने की जरूरत है। यह सही रहा कि कांग्रेस, भाजपा सहित अधिकतर बड़े दलों ने जया सरकार के इस फैसले को गलत बताया है और सरकार ने इसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई है। उम्मीद है कि इन दोषियों की रिहाई रुक सकेगी।


हालांकि इस मामले में कांग्रेस के राजनीतिक पैंतरों पर भी सवाल खड़े होते हैं। दस वर्षों तक उसके नेतृत्व वाली सरकार केंद्र में रही और उसने राजीव के हत्यारों की दया याचिका पर निर्णय टाले रखा जबकि अन्य कुछ मामलों में उसने फैसला लिया। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पूर्व में राजीव हत्या के दोषियों की सजा कम करने की पैरवी की। 2008 में प्रियंका गांधी चेन्नई जेल में बंद नलिनी से मानवीय आधार पर मिल कर आईं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नलिनी की सजा कम कराई और जब जब चुनाव सिर पर हैं, ऐसे में रिहाई के फैसले के जरिये कांग्रेस भावनाओं को उभारने के प्रयास में है। अमेठी में मौजूद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि जब एक प्रधानमंत्री के साथ न्याय नहीं हो सकता तो आम आदमी को कैसे न्याय मिलेगा। हालांकि उन्होंने इससे पहले दोषियों की सजा मृत्युदंड से कम कर उम्रकैद किये जाने पर कुछ नहीं कहा था। अब प्रधानमंत्री सहित सरकार का एक एक मंत्री, कांग्रेस का एक एक पदाधिकारी इसके खिलाफ जिस तरह बोल रहा है वह उनका हक तो है लेकिन यह राजनीतिक मंशा भी जाहिर करता है।


बहरहाल, जहां तक बात मौत की सजा के नैतिक पक्ष की है तो यह सही है कि दुनिया भर में इसका प्रचलन कम हो रहा है और मीडिया रिपोर्टों के आंकड़ों के मुताबिक 140 देश फांसी की सजा को हटा चुके हैं। अपने देश में भी फांसी की सजा को खत्म करने की बहस वर्षों से चल रही है लेकिन किसी तार्किक अंजाम तक नहीं पहुंच पायी है। जब तक इस मामले में कोई एकराय नहीं बन जाती तब तक जघन्य अपराधों, कांडों में शामिल लोगों की सजा पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे सिर्फ आतंकवादियों और अपराधियों का हौसला ही बुलंद होगा क्योंकि उन्हें पता है कि पहले तो मुकदमा वर्षों तक चलेगा और जब सजा सुना भी दी जायेगी तो राजनीतिक कारणों से इसमें विलंब होता रहेगा और फिर इसी विलंब को आधार बनाकर वह आजाद हो जाएंगे।


भारत माता की जय
नीरज कुमार दुबे