View My Stats

Thursday 26 March, 2009

आईएसआई-तालिबान गठजोड़ की बात फिर सामने आई

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की पोल खोलती एक अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएसआई के लोग तालिबान को लगातार मदद पहुंचा रहे हैं और वर्ष 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमले में आईएसआई के एजेंटों का हाथ होने के सुबूत मिलने के बाद से हालात में मामूली सा बदलाव आया है। आज के न्यूयार्क टाइम्स ने अमेरिकी सरकार के अधिकारियों के हवाले से कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के कुछ लोग दक्षिणी अफगानिस्तान में तालिबान की मुहिम को सीधे मदद मुहैया करा रहे हैं जबकि सरकारी दावा है कि आईएसआई ने चरमपंथियों से संबंध तोड़ लिए है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह की पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा था कि आईएसआई तालिबान को मदद नहीं पहुंचा रही है जबकि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सेना से मुकाबले के लिए आईएसआई के सहयोग में तालिबान कमांडरों को धन मुहैया कराना, सैन्य आपूर्ति और सामरिक योजना के लिए मार्गदर्शन शामिल है। अखबार ने अधिकारियों के हवाले से कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लोग तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों के सहयोग और समर्थन की व्यवस्था का समन्वय कर रहे हैं।

एक और अमेरिकी अखबार वाल स्ट्रीट जरनल ने भी अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा है कि भरोसेमंद मुखबिरों और खास इलेक्ट्रानिक उपकरणों के जरिए तालिबान और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के बीच गठजोड़ पकड़ में आया है। इसमें कहा गया है कि जलालुद्दीन हक्कानी के गुट ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर बीते साल बमबारी की थी। हमले में 54 लोग मारे गए थे। इसमें कहा गया है कि इस बात के भी सबूत हैं कि आईएसआई के लोग नियमित रूप से तालिबान कमांडरों से मुलाकात करते हैं और अफगानिस्तान में होने वाले चुनावों से पहले हिंसा का स्तर बढ़ाने या हिंसा बंद करने के बारे में विचार-विमर्श करते हैं। न्यूयार्क टाइम्स की यह रिपोर्ट आईएसआई के आला अधिकारियों के उस दावे के ठीक विपरीत है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि गुप्तचर एजेंसी ने तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों से संबंध तोड़ लिए हैं। अमेरिकी अधिकारियों ने माना है कि उन्हें आईएसआई और तालिबान लड़ाकों की निष्ठा को समझने में दिक्कत आ रही है।

लेकिन न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक पाकिस्तान का कहना है कि अमेरिकी अधिकारी जितना खतरा समझ रहे हैं दरअसल उतना खतरा है नहीं। पाकिस्तान के एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का कहना है खुफिया तंत्र में आपको अपने शत्रु के भी संपर्क में रहना पड़ता है वरना आप अंधेरे में तीर चला रहे होते हैं। न्यूयार्क टाइम्स ने पाकिस्तान के जिन अधिकारियों का साक्षात्कार किया उन्होंने कहा कि उन्हें तालिबान और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के बीच संबंध की जानकारी है हालांकि वह इस बात से इंकार करते हैं कि समझौते से आतंकवाद मजबूत हो रहा है। अखबार का कहना है कि काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमले के संबंध में अमेरिकी सबूतों के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने बीते साल प्रतिज्ञा ली थी कि आईएसआई से निपटा जाएगा और आतंकवादियों के साथ काम करने वालों को बर्खास्त कर दिया जाएगा। पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जरदारी सरकार का भविष्य अनिश्चित है इसलिए आईएसआई पर लगाम की बात तो वह फिलहाल सोच भी नहीं सकते।

एक बात और वह यह कि आईएसआई पर भरोसा करने के कितने भी बयान किसी की भी ओर से आ जाएं लेकिन वह भरोसा करने लायक संगठन है ही नहीं क्योंकि उसकी बुनियाद ही भारत विरोध पर रखी गई है।

नीरज कुमार दुबे

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

इसमें कुछ नया नहीं है बन्धु. और पाकिस्तान की तो आप बात ही छोड़ दीजिए, भारत सरकार भी इस पर मेहनत करने से कतराती ही रहेगी. तब तक जब तक कि जनता जनार्दन ख़ुद जूता लेकर नेताओं के सिर पर सवार नहीं हो जाती है.