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Tuesday 17 February, 2009

अब... तालिबान से बचो!


पाकिस्तान से संचालित हो रहा आतंकवाद न केवल क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा कर रहा है। आतंकवाद के इस नये खतरे पर रोक लगाना पाकिस्तान के वश की बात नहीं है क्योंकि वहां के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी खुद कह चुके हैं कि तालिबान पाकिस्तान पर कब्जा करना चाहता है। इस समय भारत, अमेरिका और शेष अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस नये खतरे की गंभीरता समझने की और खतरे को खत्म करने के लिए और कदम उठाने की जरूरत है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिए विशेष अमेरिकी प्रतिनिधि रिचर्ड होलब्रूक ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा है कि पाकिस्तान से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा तालिबान पाकिस्तान के साथ-साथ भारत और अमेरिका के लिए भी समान खतरा पैदा कर रहा है। होलब्रूक ने कहा कि 60 साल में पहली बार भारत, पाकिस्तान और अमेरिका सभी एक ही शत्रु का सामना कर रहे हैं।

पाकिस्तान सरकार ने तालिबान के आतंक से बचने के लिए उसके साथ पिछले साल मई में एक शांति समझौता किया था लेकिन कुछ ही महीनों में यह टूट गया। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि उग्रवादियों ने फिर संगठित होने के लिए शांति समझौते का इस्तेमाल किया। होलब्रूक ने अपनी हाल की पाकिस्तान यात्रा के बारे में बताया कि जब मैं कबायली इलाकों में था तो मैं स्वात नहीं गया लेकिन मैं पेशावर गया। मैंने स्वात की जनता से बातचीत की तो वे वास्तव में आतंकित दिखे। उन्होंने कहा कि स्वात ने पाकिस्तान के लोगों पर हकीकत में और गहराई से असर डाला है और ऐसा केवल पेशावर में ही नहीं बल्कि लाहौर और इस्लामाबाद में भी है।

ंइस्लामाबाद से केवल 160 किलोमीटर दूर स्थित स्वात में वस्तुत: तालिबान का नियंत्रण है जिसने पाकिस्तानी सेना को मुश्किल समय में डाल दिया है और अपने उग्रवादियों की रिहाई के लिए उसने विदेशियों सहित अनेक लोगों का अपहरण किया है। अभी हाल ही में खबर आई कि एक चीनी अधिकारी को छुड़वाने के लिए पाक ने कई तालिबानियों को छोड़ा था।

लग तो यही रहा है कि तालिबान पाक पर अपना शिंकजा कसता जा रहा है क्योंकि तालिबान के आगे झुकते हुए पाकिस्तान सरकार ने स्वात घाटी समेत उत्तार पश्चिमी फ्रंटियर प्रान्त के हिस्सों में शरीयत कानून लागू करने की मांग मान ली है। आतंकवादियों के साथ शांति समझौतों के अमेरिका द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद प्रान्त की सरकार और तहरीक ए निफाज ए शरीया मोहम्मदी (टीएनएसएम) के बीच एक समझौते पर दस्तखत किए गए। इस करार के तहत शरीयत या इस्लामी कानून के खिलाफ जाने वाले सभी नियम कायदों को खत्म कर दिया गया है और इस बात पर सहमति बनी है कि इलाके में सैनिक मौजूद रहेंगे और सिर्फ हमला किए जाने पर ही कार्रवाई करेंगे। देश और फ्रंटियर प्रान्त की सरकारें क्षेत्र में इस्लामी कानूनों पर अमल की निगरानी करेंगी। यह घोषणा स्वात घाटी में आतंक फैला रहे तालिबान की ओर से 10 दिवसीय संघर्षविराम के एलान के बाद की गई है। इससे पहले आतंकवादियों के साथ किए गए अनेक समझौते नाकाम साबित हो चुके है और अमेरिका ने ऐसे करार को दहशतगर्दों को फिर से एकजुट होने का मौका मानते हुए उनकी आलोचना की थी।

लोकतंत्र की दुहाई देने वाले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी की इस समझौते पर यह प्रतिक्रिया अचरज भरी लगी कि स्वात में हुआ समझौता मुल्क के लिए फायदेमंद होगा। गिलानी ने कहा कि उनकी सरकार का मानना है कि आतंकवाद से निपटने के लिए सेना का इस्तेमाल एकमात्र विकल्प नहीं है।

उल्लेखनीय है कि तालिबान आतंकवादी क्षेत्र में शरीयत को बेरहमी से लागू कर रहे हैं। इसकी आड़ में उन्होंने लड़कियों के अनेक स्कूलों को आग के हवाले कर दिया है। साथ ही वे सरकारी इमारतों, अदालतों और सुरक्षा बलों पर भी कई बार हमले कर चुके हैं। इस्लामाबाद से करीब 160 किलोमीटर दूर स्थित खूबसूरत घाटी स्वात करीब दो साल पहले पर्यटकों का प्रिय प्रिय स्थल थी। खूबसूरत वादियों वाली इस घाटी में अब तालिबान का खौफ छा चुका है। तालिबान नेता फजलुल्ला ने घाटी में शरीयत लागू करने का हिंसक अभियान छेड़ा था जिसे सफलता मिल गई है।

बहरहाल होलब्रूक की इस बात को गंभीरता के साथ लिया जाना चाहिये कि तालिबान इस समय सबसे बड़ा खतरा है। भारत को अन्य मुद्दों पर गौर करने के साथ ही इस नई मुसीबत से भी पार पाने के लिए रणनीति बनानी चाहिये।

नीरज कुमार दुबे

1 comment:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ज़रदारी ठीक कह रहे हैं. सच तो यह है कि तालिबान कब्जा कर रहे हैं पाकिस्तान पर. इस काम में उन्हें एक दशक से ज़्यादा समय नहीं लगेगा. और जिस रास्ते पर भारतीय राजनेता और बुद्धिजीवी चल रहे हैं, उस पर ग़ौर करें तोअ यह संकोच नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान के बाद भारत का अही नम्बर है.