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Wednesday 24 December, 2008

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हुई राजनीतिक लड़ाई में तब्दील


दस दिन पहले शुरू हुये संसद के सत्र के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा आतंकवाद था और इसे लेकर लगभग सभी दलों ने एकजुटता प्रदर्शित भी की थी। लेकिन सत्र समाप्ति तक आते-आते यह एकजुटता तार-तार हो गई और सभी दल अपनी ढपली अपना राग अलापने लगे जिससे कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई थोड़ी कमजोर हुई।

इस लड़ाई को कमजोर करने का काम सबसे पहले केंद्रीय मंत्री एआर अंतुले ने किया जिन्होंने मुंबई हमलों में शहीद हुये हेमंत करकरे की मौत की परिस्थितियों पर संदेह जताया। इसके बाद तो वह जैसे पाकिस्तान में हीरो ही बन गये और पाकिस्तान सरकार ने उनका बयान अपने बचाव के लिए उपयोग किया। आतंकवाद के खिलाफ यह सरकार का कैसा प्रयास है कि उसमें इस मसले पर दो सुर हैं। एक ओर तो विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी पाकिस्तान पर आतंकवादी ढांचे नष्ट करने के लिए भारी दबाव बनाने की बात कह रहे हैं और ऐसा न होने पर सभी विकल्प खुले होने की बात कह रहे हैं तो दूसरी ओर अंतुले के बयान से पाकिस्तानी पक्ष यह कहने में सफल हुआ है कि भारत के एक मंत्री ने सच कहने का साहस दिखाया है।

यह आतंकवाद के खिलाफ कैसी लड़ाई है कि हमारे प्रधानमंत्री पाकिस्तान पर दबाव बनाने की बात कहते-कहते बीच में ही साफ कर गये कि भारत युध्द नहीं चाहता। प्रधानमंत्री जी, यह सही है कि युध्द में किसी का भला नहीं है लेकिन कम से कम इस बात को सार्वजनिक रूप से तो नहीं कहना चाहिये था। आपने तो पाकिस्तान को रिलेक्स कर दिया जोकि अब तक काफी तनाव में था। संभव था कि भारतीय हमले की आशंका के चलते वह आतंकवादी ढांचों को नष्ट करने की दिशा में कुछ कदम उठाता। खैर आपने भी कुछ सोचकर ही यह बयान दिया होगा लेकिन यह बयान जनमानस को शायद ही भाये। आपसे अपेक्षा थी कि आप अपने मंत्री अंतुले के खिलाफ भी कोई कदम उठाते। जिस मंत्री (शिवराज पाटिल) की नाकामी से आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर विफलता मिली उसे तो आपने मंत्रिमंडल से हटा दिया लेकिन जिस मंत्री के कारण उस कवायद में पलीता लगा जिसमें आतंकवाद खासकर पाक जनित आतंकवाद के खिलाफ भारत विश्वव्यापी समर्थन हासिल कर रहा था, उनको क्या यूं ही बख्श दिया जायेगा। यह वोट बैंक की राजनीति नहीं तो और क्या है?

प्रधानमंत्री जी यह पहली बार है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम को विश्वव्यापी समर्थन मिला है। इस मौके का फायदा उठाना चाहिये और समय न गंवाते हुए पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये। पाकिस्तान की ओर से तो गीदड़ भभकियां दी जा रही हैं और हमारी ओर से 'युध्द नहीं चाहते' जैसे बयान दिये जा रहे हैं यह सब उसका हौसला ही बढ़ा रहे हैं।

इसके अलावा शहीदों की मौत पर सवाल उठाने वाले नेताओं पर भी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिये। पहले कुछ नेताओं ने शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत पर सवाल उठाये और अब शहीद हेमंत करकरे और अन्यों की मौत पर सवाल उठाये जा रहे हैं। जनता आक्रोशित है, यह बात नेताओं को समझनी चाहिये। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई में तब्दील करने से बचना चाहिये।

नीरज कुमार दुबे

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