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Wednesday 21 November, 2012

कसाब को फांसीः चार साल भले लगे लेकिन जीत भारत की ही हुई

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले की चौथी बरसी के ठीक पहले आतंकवादी अजमल कसाब को दी गई फांसी आतंकवाद को भारत का करारा जवाब तो है ही हमले में मारे गये नागरिकों व सुरक्षाकर्मियों को सच्ची श्रद्धांजलि भी है। कसाब की मौत की खबर निश्चित रूप से मुंबई हमले के प्रभावित परिवारों के जख्मों पर मरहम का काम भी करेगी। कसाब मामले में न्यायिक प्रक्रिया का पूरा पालन कर भारत ने यह दिखा दिया है कि वह अपने दुश्मनों के साथ जनभावनाओं के आधार पर ही फैसला नहीं करता। निचली अदालत की ओर से छह मई 2010 में कसाब को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद से उसे अपने बचाव के लिए उपलब्ध तमाम कानूनी विकल्पों को आजमाने का मौका दिया गया। सरकार ने इस बीच विपक्ष ही नहीं बल्कि जनता की भी आलोचनाओं का खूब सामना किया और उस पर आतंकवाद के खिलाफ नरम रुख रखने के आरोप भी लगे लेकिन भारत की न्यायिक प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए उसने सब सहा। 26 नवंबर 2012 को भी होने वाले कार्यक्रमों में कसाब को फांसी नहीं दिये जाने पर सरकार की आलोचना की जाती लेकिन अब इन कार्यक्रमों में 'जश्न' होगा।

वैसे कसाब को फांसी पर शीघ्र ही लटकाने के संकेत तो तभी से मिलने लगे थे जब उच्चतम न्यायालय की ओर से भी मौत की सजा को बरकरार रखने के बाद कसाब ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी जिस पर राष्ट्रपति ने तुरंत ही गृह मंत्रालय की राय मांगी। गृह मंत्रालय से भी जल्द ही जवाब आया जिस पर गौर करते हुए राष्ट्रपति ने कसाब की याचिका ठुकरा दी। अब सरकार के सामने रास्ता साफ था और इंतजार था सही समय का। 26 नवंबर की वर्षगांठ और संसद के शीतकालीन सत्र से ठीक पहले सरकार ने ऐसा दांव चला कि घरेलू और बाहरी विरोधी, सभी चित हो गये। विपक्षी खेमों में सरकार को घेरने के लिए तरह तरह की रणनीति बन रही थीं लेकिन अब सरकार का हौसला बढ़ गया है क्योंकि जन समर्थन उसके साथ है।

कहा जा रहा है कि सरकार चुनावों के लिए कमर कस चुकी है। आर्थिक सुधारों पर तेजी से ध्यान देने के साथ ही घरेलू स्तर पर अपने खिलाफ उठ रहे मुद्दों से भी निपटने का प्रयास किया जा रहा है। गुजरात के विधानसभा चुनाव सिर पर हैं वहां कांग्रेस अपने लिए अब कुछ ज्यादा लाभ की उम्मीद कर सकती है। 2014 से पहले पहले सरकार का प्रयास रहेगा कि विपक्ष के तरकश में मौजूद सभी तीरों को बेकार कर दिया जाए। कसाब मामले में फैसला लिए जाते समय सरकार के जेहन में अमेरिका का उदाहरण भी रहा होगा कि कैसे 9/11 के साजिशकर्ता ओसामा बिन लादेन को मार गिराने का लाभ बराक ओबामा को राष्ट्रपति पद के लिए दूसरा कार्यकाल हासिल करने के लिए मिला।

कसाब को दो दिन पहले पुणे की यरवदा जेल में जब ले जाया जा रहा था तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि कसाब को फांसी के लिए ले जाया जा रहा है लेकिन पर्दे के पीछे सारी गतिविधियां चल रही थीं। जेल के वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस बारे में नहीं पता था और देश का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और महाराष्ट्र के कुछ आला पुलिस अधिकारी ही इस प्रस्तावित कार्रवाई से वाकिफ थे। पाकिस्तान सरकार को सूचना देने के लिए इस्लामाबाद स्थित भारतीय राजदूत को काम पर लगाया गया था तो वैश्विक स्तर पर सरकार मोर्चा संभाले हुए थी। गौरतलब है कि भारत ने कसाब को फांसी पर लटकाने से ठीक दो दिन पहले संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव का विरोध किया था जिसके तहत मृत्युदंड पर प्रतिबंध की बात कही गयी थी। 110 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था जबकि भारत, अमेरिका और चीन सहित 39 देश इस प्रस्ताव के खिलाफ थे।
निश्चित रूप से यह भारत की जनता के लिए बड़ी खुशी का अवसर है। लेकिन कुछ सवाल अब भी बाकी हैं। संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को अब तक फांसी नहीं दी गई है जिससे कोई बाहरी व्यक्ति या देश यह सवाल उठा सकता है कि अपने यहां के आतंकियों पर भारत जल्द फैसला क्यों नहीं करता। संभव है कश्मीर के हालात बिगड़ने की आशंका के चलते अफजल को फांसी टाली जा रही हो। लेकिन हमें अपनी प्रशासनिक क्षमता और सुरक्षा बलों पर भरोसा होना चाहिए क्योंकि आशंकाओं से सदैव घिरे ही रहे तो आतंकवादियों का हौसला बढ़ता रहेगा।

कसाब को फांसी के साथ ही मुंबई हमला मामले की न्यायिक प्रक्रिया घरेलू स्तर पर तो पूरी हो गयी लेकिन पाकिस्तान की ओर से अब भी उन लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जाना बाकी है जो मुंबई हमले के वास्तविक गुनहगार थे। पाकिस्तान भारत की ओर से बार बार सबूत मुहैया कराए जाने के बावजूद उन पर कार्रवाई ना करने के बहाने बनाता रहता है। उम्मीद तो नहीं है कि पाकिस्तान इस मामले में कोई कार्रवाई करेगा लेकिन भारत की ओर से कसाब को फांसी पर लटकाना बेहद सराहनीय कदम है साथ ही भारत ने मुंबई हमला मामले में विश्व को पाक की भूमिका बताने के लिए जो प्रयास किये उसकी भी सराहना की जानी चाहिए।
भारतीयों को इस 'जश्न' को मनाने का मौका देने के लिए हमें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि एक अनुभवी राजनीतिक व्यक्ति ही इस तरह का फैसला ले सकता था। वरना तो पता नहीं कब तक कसाब की याचिका राष्ट्रपति कार्यालय में लंबित अन्य दया याचिकाओं के नीचे दबी ही रहती। काश दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे कुछ दिन और जीवित रहते तो उन्हें एक बड़ी खुशी का अवसर प्राप्त होता साथ ही वह अपनी उस मांग (कसाब को जल्द फांसी देने) को भी पूरा होते देख लेते जोकि उन्होंने प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन देते समय उनसे की थी।

भारत माता की जय

नीरज कुमार दुबे

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