आतंकवादियों की ओर से भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई को पुनः दहलाने में सफल होने से हमारी सुरक्षा व्यवस्था पर फिर से सवाल खड़े हो गये हैं। आतंकवादियों ने शहर के भीड़भाड़ वाले झावेरी बाजार, दादर तथा चरनी रोड़ के ओपरा हाउस में सिलसिलेवार विस्फोटों के जरिए 26/11 के आतंकवादी हमले की यादों को ताजा तो कराया ही साथ ही इस बात का संकेत भी दे दिया कि सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद वह अपने कार्यों को अंजाम देने में पूरी तरह सक्षम हैं। आज गृहमंत्री चिदम्बरम कह रहे हैं कि मुंबई में हुए हमले के बारे में किसी प्रकार की विश्वसनीय खुफिया जानकारी नहीं थी। वह इसे केंद्रीय और प्रदेश की एजेंसियों की खुफिया असफलता भी नहीं मान रहे हैं लेकिन मुंबई पुलिस ने विस्फोटों से एक दिन पहले ही इंडियन मुजाहिदीन के जिन दो संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था, उससे लगता तो यही है कि कहीं न कहीं पुलिस और सरकार को खुफिया सूचना तो थी ही। इसके अलावा ऐसी भी खबरें आई हैं कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने विस्फोटों से चंद घंटे पहले ही भारत को मुंबई समेत कुछ शहरों में संभावित आतंकी हमले की चेतावनी दे दी थी। यदि यह रिपोर्टें सही हैं तो निश्चित ही यह सरकार की ढिलाई का एक बड़ा उदाहरण कहा जाएगा।
इसके अलावा विस्फोटों के बाद जिस तरह घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंसें देर से पहुंचीं और अस्पतालों में अव्यवस्था का आलम रहा वह हमारी आपदा प्रबंधन तैयारियों की भी पोल खोलता है। रिपोर्टों के मुताबिक इससे पहले कि एंबुलेंसे घटनास्थल पर पहुंचतीं, लोगों ने ही कई घायलों को स्कूटरों, कारों इत्यादि में बैठाकर अस्पताल तक पहुंचाया। इसके अलावा जिन अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है, वहां देर रात तक घायलों और मृतकों के नामों की कोई सूची तक नहीं थी, सारे दरवाजे बंद करे देने के कारण पीडि़तों के परिजनों तक जरूरी सूचनाएं नहीं पहुंच पा रही थीं।
दूसरी ओर, विस्फोटों के समय पर गौर करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह एक बहुत बड़ी सुनियोजित साजिश थी। 26/11 के मुंबई हमलों में दोषी करार दिये गये आतंकवादी अजमल कसाब के 24वें जन्मदिन और भारत पाक विदेश मंत्री वार्ता से 11 दिन पहले अंजाम दिये गये यह विस्फोट भारत पाक वार्ता को पटरी से उतारने के प्रयास भी हो सकते हैं। ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अपने ही स्थानीय आतंकवादी संगठनों के निशाने पर आए पाकिस्तान को भारत की ओर से भी घेरने के लिए भी यह कवायद की गई हो सकती है। इन विस्फोटों के पीछे भले अब तक पाकिस्तानी हाथ की बात साफ न हुई हो लेकिन इतना तो सभी जानते हैं कि जिन्होंने भी इन विस्फोटों को अंजाम दिया है उन्हें फंडिंग कहां से हो रही है।
जहां तक हमारी सुरक्षा व्यवस्था का सवाल है तो यह हैरानी वाली बात है कि जिस झावेरी बाजार को आतंकवादी तीन बार निशाना बना चुके हैं वहां सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध क्यों नहीं किये गये। अब मुंबई में विस्फोटों के बाद देश भर में अलर्ट कर दिया गया है और जगह जगह लोगों की तलाशी ली जा रही है। यह कवायद ज्यादा से ज्यादा सप्ताह भर चलेगी उसके बाद सब फिर ढीले पड़ जाएंगे और इसी ढिलाई का फायदा फिर से आतंकी उठाएंगे और निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाएंगे। विस्फोटों के बाद सरकार ने मुआवजा घोषित कर दिया है और दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का वादा किया है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या पिछली बार के हमलों में न्याय के कठघरे में लाए गए लोग दोषी साबित होने और सजा सुनाए जाने के बावजूद सजा से अब तक क्यों ‘वंचित’ रखे गये हैं? निश्चित ही इन सबसे आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर होती है। सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने और मिलजुलकर इससे लड़ने के आह्वान भर से आतंकवाद का मुकाबला नहीं किया जा सकता इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यह भी आश्चर्यजनक है कि 26/11 हमले के बाद देश में अब तक जो दो आतंकी हमले हुए हैं वह महाराष्ट्र में ही हुए। पहला पुणे के जर्मन बेकरी में और अब दूसरा मुंबई में। निश्चित ही आतंकवादी संगठन जानते हैं कि भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई और साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील राज्य महाराष्ट्र में हमला कर देश भर में तनाव पैदा किया जा सकता है, आर्थिक तरक्की की राह में बाधा डाली जा सकती है, विदेशी पर्यटकों का मोहभंग किया जा सकता है, सरकार को विपक्ष और जनता के सीधे निशाने पर लाया जा सकता है और विश्व भर में एक ‘संदेश’ दिया जा सकता है।
बहरहाल, विस्फोटों में मारे गए लोगों को भगवान अपने चरणों में स्थान प्रदान करे, उनके परिजनों को यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करे, यही हर भारतवासी को प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही सभी को सतर्क और एकजुट रहना चाहिए क्योंकि अपने सुरक्षा बलों की सक्षमता पर पूरा विश्वास होने के बावजूद यह बात हर बार साबित हो चुकी है कि आतंकी कहीं भी हमला करने में सक्षम हैं। अब समय है कि इसी माह भारत और अमेरिका तथा भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली रणनीतिक और विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता में आतंकवाद से मुकाबले और सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने का मुद्दा शीर्षस्थ प्राथमिकता पर हो। हमलावरों, उनके समर्थकों, संरक्षकों और उनको कोष उपलब्ध कराने वालों का पता लगाया जाना चाहिए और जो भी लोग निर्दोष जनता की सामूहिक हत्याओं में शामिल हैं उन्हें कड़ा सबक सिखाया जाना चाहिए। वैसे यह खुशी की बात है कि मुंबईवालों का हौसला डिगा नहीं है। उनके इस जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए।
जय हिन्द, जय हिन्दी
नीरज कुमार दुबे
इसके अलावा विस्फोटों के बाद जिस तरह घायलों को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंसें देर से पहुंचीं और अस्पतालों में अव्यवस्था का आलम रहा वह हमारी आपदा प्रबंधन तैयारियों की भी पोल खोलता है। रिपोर्टों के मुताबिक इससे पहले कि एंबुलेंसे घटनास्थल पर पहुंचतीं, लोगों ने ही कई घायलों को स्कूटरों, कारों इत्यादि में बैठाकर अस्पताल तक पहुंचाया। इसके अलावा जिन अस्पतालों में घायलों का इलाज चल रहा है, वहां देर रात तक घायलों और मृतकों के नामों की कोई सूची तक नहीं थी, सारे दरवाजे बंद करे देने के कारण पीडि़तों के परिजनों तक जरूरी सूचनाएं नहीं पहुंच पा रही थीं।
दूसरी ओर, विस्फोटों के समय पर गौर करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह एक बहुत बड़ी सुनियोजित साजिश थी। 26/11 के मुंबई हमलों में दोषी करार दिये गये आतंकवादी अजमल कसाब के 24वें जन्मदिन और भारत पाक विदेश मंत्री वार्ता से 11 दिन पहले अंजाम दिये गये यह विस्फोट भारत पाक वार्ता को पटरी से उतारने के प्रयास भी हो सकते हैं। ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अपने ही स्थानीय आतंकवादी संगठनों के निशाने पर आए पाकिस्तान को भारत की ओर से भी घेरने के लिए भी यह कवायद की गई हो सकती है। इन विस्फोटों के पीछे भले अब तक पाकिस्तानी हाथ की बात साफ न हुई हो लेकिन इतना तो सभी जानते हैं कि जिन्होंने भी इन विस्फोटों को अंजाम दिया है उन्हें फंडिंग कहां से हो रही है।
जहां तक हमारी सुरक्षा व्यवस्था का सवाल है तो यह हैरानी वाली बात है कि जिस झावेरी बाजार को आतंकवादी तीन बार निशाना बना चुके हैं वहां सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध क्यों नहीं किये गये। अब मुंबई में विस्फोटों के बाद देश भर में अलर्ट कर दिया गया है और जगह जगह लोगों की तलाशी ली जा रही है। यह कवायद ज्यादा से ज्यादा सप्ताह भर चलेगी उसके बाद सब फिर ढीले पड़ जाएंगे और इसी ढिलाई का फायदा फिर से आतंकी उठाएंगे और निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाएंगे। विस्फोटों के बाद सरकार ने मुआवजा घोषित कर दिया है और दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने का वादा किया है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या पिछली बार के हमलों में न्याय के कठघरे में लाए गए लोग दोषी साबित होने और सजा सुनाए जाने के बावजूद सजा से अब तक क्यों ‘वंचित’ रखे गये हैं? निश्चित ही इन सबसे आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर होती है। सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने और मिलजुलकर इससे लड़ने के आह्वान भर से आतंकवाद का मुकाबला नहीं किया जा सकता इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यह भी आश्चर्यजनक है कि 26/11 हमले के बाद देश में अब तक जो दो आतंकी हमले हुए हैं वह महाराष्ट्र में ही हुए। पहला पुणे के जर्मन बेकरी में और अब दूसरा मुंबई में। निश्चित ही आतंकवादी संगठन जानते हैं कि भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई और साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील राज्य महाराष्ट्र में हमला कर देश भर में तनाव पैदा किया जा सकता है, आर्थिक तरक्की की राह में बाधा डाली जा सकती है, विदेशी पर्यटकों का मोहभंग किया जा सकता है, सरकार को विपक्ष और जनता के सीधे निशाने पर लाया जा सकता है और विश्व भर में एक ‘संदेश’ दिया जा सकता है।
बहरहाल, विस्फोटों में मारे गए लोगों को भगवान अपने चरणों में स्थान प्रदान करे, उनके परिजनों को यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करे, यही हर भारतवासी को प्रार्थना करनी चाहिए। साथ ही सभी को सतर्क और एकजुट रहना चाहिए क्योंकि अपने सुरक्षा बलों की सक्षमता पर पूरा विश्वास होने के बावजूद यह बात हर बार साबित हो चुकी है कि आतंकी कहीं भी हमला करने में सक्षम हैं। अब समय है कि इसी माह भारत और अमेरिका तथा भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली रणनीतिक और विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता में आतंकवाद से मुकाबले और सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा देने का मुद्दा शीर्षस्थ प्राथमिकता पर हो। हमलावरों, उनके समर्थकों, संरक्षकों और उनको कोष उपलब्ध कराने वालों का पता लगाया जाना चाहिए और जो भी लोग निर्दोष जनता की सामूहिक हत्याओं में शामिल हैं उन्हें कड़ा सबक सिखाया जाना चाहिए। वैसे यह खुशी की बात है कि मुंबईवालों का हौसला डिगा नहीं है। उनके इस जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए।
जय हिन्द, जय हिन्दी
नीरज कुमार दुबे
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