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Monday, 9 May 2011

ओसामा को सम्मान देने से आखिर क्या फायदा होगा दिग्विजय जी




कभी कथित ‘भगवा आतंकवाद’ का भय दिखाकर तो कभी आतंकवाद की घटना के बहाने राजनीतिक लाभ उठाने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की ओर से अल कायदा प्रमुख को ‘ओसामा जी’ कह कर पुकारा जाना हो या फिर ओसामा बिन लादेन को समुद्र में दफनाए जाने का विरोध करना हो, दोनों ही बेहद आपत्तिजनक बाते हैं। लेकिन वोट बैंक की राजनीति के इस दौर में सही या गलत की परवाह किसे है। यह वोट बैंक की राजनीति और साम्प्रदायिकता नहीं तो और क्या है कि हमारे नेता यह सोचते हैं कि लादेन के साथ जो हश्र हुआ उसको सही ठहराने से कहीं एक वर्ग की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचे। लेकिन वह भूल जाते हैं कि लादेन का किसी धर्म से वास्ता नहीं था वह सिर्फ अमेरिका का ही नहीं बल्कि इंसानियत का भी दुश्मन था और उसके द्वारा संचालित हमलों में मुस्लिम सिर्फ मारे ही नहीं गये बल्कि लादेन और उसके संगठन के कार्यों की बदौलत विश्व भर में संदिग्ध नजरों से देखे भी गये। ऐसा व्यक्ति जो अपनी कौम का ही दुश्मन बन गया हो उसके मारे जाने पर शोक कैसा? उसे सम्मानजनक तरीके से संबोधित कर यह कल्पना करना कि इससे किसी वर्ग को लुभाया जा सकेगा, बेकार की बात है।

दिग्विजय सिंह के इन बयानों से कांग्रेस पार्टी ने दूरी बनाकर सही किया क्योंकि पार्टी पर पहले ही आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में ढिलाई बरतने और दोषियों की सजा पर कार्रवाई में देरी करने जैसे आरोप लगते रहे हैं। खबरों में कहा गया कि कांग्रेस ने इस विषय पर दिग्विजय सिंह को तलब भी किया है लेकिन खुद दिग्विजय ने ऐसी किसी बात से इंकार किया। दिग्विजय को यह देखना चाहिए कि उनके इस कदम ने उनको किन लोगों के साथ और किस श्रेणी में खड़ा किया। जहां एक ओर दिग्विजय लादेन को ‘ओसामा जी’ कह कर संबोधित कर रहे थे तो दूसरी ओर हुर्रियत कांफ्रेंस के उग्रपंथी गुट के सैय्द अली शाह गिलानी थे जो लादेन के लिय्ो जनाजे की नमाज का आह्वान कर रहे थे। तीसरी ओर कोलकाता की स्थानीय् टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना नूरूर रहमान बरकती थे, जिन्होंने लादेन की ‘‘आत्मा की शांति‘‘ के लिए विशेष नमाज अदा की तो चैथी ओर केरल का वह व्यक्ति अथवा संगठन था, जिसकी ओर से ओसामा के मारे जाने के खिलाफ पर्चे बंटवाने की खबर आई। इससे पहले चुनावों के समय एक बार बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान की रैली में एक शख्स ओसामा के वेष में लोगों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा था।

पार्टी की कथित दोगली नीतियों के चलते दूर हुए मुस्लिम मतदाताओं को वापस कांग्रेस से जोड़ने के प्रयास में दिग्विजय सिंह जब तब कोई न कोई तीर छोड़ते रहते हैं। इससे पहले उन्होंने दिल्ली में हुए विस्फोटों के बाद हुए बाटला मुठभेड़ कांड पर सवाल उठाते हुए आजमगढ़ का दौरा किया था। हालांकि उस समय दिग्विजय ने यही कहा था कि वह सच्चाई का पता लगाने के लिए इलाके का दौरा कर रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को रिपोर्ट भी सौंपी थी लेकिन जब सरकार, मानवाधिकार आयोग जैसे संस्थान मुठभेड़ को सही ठहरा चुके हों तो किसी पार्टी महासचिव की रिपोर्ट का कोई औचित्य नहीं रह जाता। इस मामले में भी दिग्विजय पर वोट बैंक की राजनीति करने के आरोप लगे थे। यही नहीं उन्होंने तो मुंबई हमले के दौरान हेमंत करकरे की शहादत पर भी एक तरह से सवाल उठाया था जब उन्होंने यह कहा था कि करकरे ने उन्हें फोन कर बताया था कि वह मालेगांव धमाके की जांच के सिलसिले में संघ परिवार के निशाने पर हैं।

दिग्विजय की हालिया कथित उपलब्धियों की बात की जाए तो उनके हिस्से में ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को प्रचलित कराने का श्रेय भी है। साथ ही वह इस बात के लिए भी विख्यात हैं कि पार्टी संगठन में राज्यों के प्रभारी मात्र होने के बावजूद राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय और अन्य विषयों पर भी खूब बोलते हैं। दूसरों की संपत्ति की जांच की मांग करना उनका प्रिय शगल है तो साथ ही अपने पर हमला बोलने वाले पर तेजी से आक्रामक होना उनकी विशेष रणनीति है। बहरहाल, ओसामा को सम्मानपूर्वक संबोधन से पूर्व दिग्विजय जी को उन परिवारों या पीडि़तों के हाल पर नजर दौड़ा लेनी चाहिए थी जो विश्व भर में ओसामा की आतंकी गतिविधियों के शिकार हुए।

जय हिंद, जय हिंदी


नीरज कुमार दुबे

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