तमाम आनाकानी के बाद पाकिस्तान ने मुंबई हमलों में अपने नागरिकों की संलिप्तता को आखिरकार स्वीकार कर लिया है। ऐसा उसने हृदय परिवर्तन होने के कारण नहीं बल्कि मजबूरी में किया है। यह मजबूरी अमेरिका द्वारा रोकी गई सहायता और उस पर पड़ रहा अंतरराष्ट्रीय दबाव थी। लेकिन पाकिस्तान या फिर उसके यहां मौजूद भारत विरोधी तत्व अभी इतने भी मजबूर नहीं हुये हैं कि वह भारत पर हमले बंद कर दें।
अमेरिका के एक शीर्ष खुफिया अधिकारी ने आशंका जताई है कि पाकिस्तान स्थित संगठन भारत के खिलाफ और हमले कर सकते हैं और कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों के खिलाफ सख्त उपाय नहीं करता तब तक उसके भारत के साथ संबंध सुधरने की संभावना कम है और परमाणु युध्द का खतरा बना रहेगा। अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया सेवा के नए निदेशक डेनिस सी. ब्लेयर ने अपनी सालाना जोखिम आकलन रिपोर्ट में कहा कि भारत विरोधी उग्रवादी संगठनों को पाकिस्तान के समर्थन देने की भारत की चिंताएं दूर करने के लिए जब तक पाकिस्तान टिकाऊ, ठोस और सार्थक कदम नहीं उठा लेता तब तक दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता प्रक्रिया नाकाम रहेगी। उन्होंने आशंका जताई कि पाकिस्तान जब तक उसके देश में स्थित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता तब तक भारत के खिलाफ और हमले हो सकते हैं तथा भारत-पाकिस्तान संघर्ष भड़कने का जोखिम बढ़ सकता है। सीनेट की चयन समिति के समक्ष पेश अपनी रिपोर्ट में ब्लेयर ने कहा कि यह मामला विशेषकर नवंबर 2008 के मुंबई के आतंकवादी हमलों के आलोक में है।
भारत ने भी पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति के बाद ज्यादा प्रसन्नता नहीं जताते हुए यह स्पष्ट कर सही कदम उठाया है कि पाकिस्तान से संबंध इसी बात पर निर्भर करेंगे कि उसने मुंबई हमलों के मामले में क्या कार्रवाई की। साथ ही भारत ने पाकिस्तान से यह भी स्पष्ट कहा है कि अब वह तय करे कि वह भारत के साथ कैसे रिश्ते चाहता है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को लोकसभा में मुंबई आतंकवादी हमलों पर अनुवर्ती कार्रवाई के संबंध में अपनी ओर से दिए गए बयान में यह भी साफ किया कि एक दिसंबर 2008 से पाकिस्तान के साथ रुकी समग्र वार्ता के तहत निकट भविष्य में कोई बैठक नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ संबंध के मामले में हम ऐसे मोड़ पर आ गए हैं कि अब पाकिस्तान के अधिकारी स्वयं तय करें कि वे भविष्य में भारत के साथ किस प्रकार का संबंध रखना चाहते हैं। मुखर्जी ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की आम जनता के साथ कोई झगड़ा नहीं है और हम उनके हित कल्याण की कामना करते हैं और हमें नहीं लगता कि इस हालात के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए अथवा उन्हें इसका परिणाम झेलना पड़े।
अभी दो-तीन दिन पहले ही अल कायदा ने भारत को चेतावनी दी थी कि यदि उसने पाकिस्तान के खिलाफ युध्द छेड़ा तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे। इससे साफ है कि अल कायदा को किसकी शह मिल रही है। पाकिस्तान को यदि आगे बढ़ना है तो उसे मन से साफ होना होगा और आतंकवादियों के विरुध्द वाकई लड़ाई छेड़नी होगी। छद्म लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ और असली लड़ाई भारत के खिलाफ की नीति से उसका भला होने वाला नहीं है।
बहरहाल भारत ने मुंबई हमलों में पाकिस्तानी सरजमीन पर आधारित तत्वों की संलिप्तता की पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति और इस संबंध में की गई गिरफ्तारियों को एक सकारात्मक घटनाक्रम करार देते हुए कहा है कि पाकिस्तान की ओर से उठाए गए मुद्दों की जांच करने के बाद जो हो सकेगा उसके साथ साझेदारी करेगा। उम्मीद की जानी चाहिये कि सब कुछ सही दिशा में आगे बढ़ेगा। लेकिन फिर भी भारत सरकार को सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि मीडिया में आ रही रिपोर्टों की मानें तो आतंकवादी बस सही समय के इंतजार में हैं।
नीरज कुमार दुबे
2 comments:
हमारे लिए अभी सतर्कता बहुत जरुरी है. पाकिस्तान तो खैर मजबूरी में यह सब कर रहा है. एक न एक दिन तो उसे मजबूर होना ही था.
पाकिस्तान की करनी और कथनी में बहुत अंतर होता है।इस लिए सावधानी जरूरी है।
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