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Tuesday, 1 February 2011

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आतंकवादी नहीं राष्ट्रवादी संगठन है

पिछले कुछ समय से संघ परिवार को लगातार आड़े हाथ ले रहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को स्थापित करने के बाद अब ‘संघी आतंकवाद’ शब्द को स्थापित करने में जी जान से जुट गये हैं इसके लिए उन्होंने 30 जनवरी 2011 को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन बयान दिया कि संघ के आतंकवाद की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या से हुई। इससे दो दिन पहले ही दिग्विजय ने एक नई कहानी प्रस्तुत कर देश के विभाजन के लिए जिन्ना की बजाय सावरकर को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का विचार सबसे पहले वीर सावरकर ने रखा था जिसकी वजह से देश का बंटवारा हुआ। इससे पहले दिग्विजय ने मुंबई एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मौत को अप्रत्यक्ष रूप से भगवा संगठनों के साथ जोड़कर विवाद खड़ा कर दिया था और बाद में उन्होंने यह सुबूत तो दिया कि उनकी करकरे से फोन पर बात हुई लेकिन वह बात क्या थी यह साबित करने में वह विफल रहे। दरअसल इन सब बयानों के जरिए उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर संघ को कठघरे में खड़ा करने की जो चाल चली थी उसमें वह काफी हद तक सफल रहे थे।

यह सब उस संघ को बदनाम करने की बड़ी साजिश का हिस्सा है जोकि प्रखर राष्ट्रवादी संगठन है और मंत्रिमंडल की विभिन्न समितियों से भी ज्यादा गहनता के साथ आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता और आपसी सद्भावना जैसे विषयों पर चर्चा करता है और मुद्दों के हल की दिशा में काम करता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि देश या समाज पर किसी भी विपत्ति के समय उसके साथ खड़े होने वाले इस संगठन के साथ इस समय भाजपा के अलावा कोई खड़ा नहीं दिखाई दे रहा। यह बात सभी जानते हैं कि दिग्विजय संघ विरोध की जो धारा बहा रहे हैं उसके पीछे उनकी कोई बड़ी राजनीतिक मंशा है। संघ के लिए सुखद बात यह है कि आप चाहे कितने भी आॅनलाइन फोरमों पर होने वाली चर्चा को देख लीजिए, शायद ही कोई दिग्विजय की बात से इत्तेफाक रखता हो। लेकिन यह भी सही है कि संघ को वह समर्थन खुले रूप से नहीं मिल पा रहा है जिसका वह हकदार है।

संघ को घेरने की रणनीति बनाते रहने में मशगूल रहने वाले दिग्विजय की बांछें तब और खिलीं जब कुछ समय पूर्व समझौता ट्रेन विस्फोट मामले की चल रही जांच के लीक हुए अंशों में दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के नेता असीमानंद और संघ नेता इंद्रेश कुमार का नाम कथित रूप से सामने आया। इसके बाद ता दिग्विजय ने अब संघ पर हमला और तेज करते हुए आरएसएस पर देश में संघी आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है। दिग्विजय ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से पूछा है कि अगर संघ आतंकवाद नहीं फैला रहा है तो इन मामलों में पकड़े जाने वाले लोगों के तार आरएसएस से क्यों जुड़े हुए मिलते हैं? दिग्विजय ने तो भाजपा की राज्य सरकारों पर भी कथित संघी आतंकवादियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए उदाहरण दिया कि समझौता विस्फोट मामले के आरोपी असीमानंद ने गुजरात में जाकर शरण ली थी। दिग्विजय वर्षों पहले से ही संघ पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह अपने कार्यकर्ताओं को बम बनाने का प्रशिक्षण देता है। यह सब कह कर दिग्विजय न सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष मजबूत कर रहे हैं बल्कि एक राष्ट्रवादी संगठन को आतंकवाद के साथ जोड़कर ‘महापाप’ भी कर रहे हैं। यह पूरी कवायद आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई से ध्यान भटकाएगी।

राजनीतिक मेधावी दिग्विजय अपने बयानों के जरिए सामंजस्य बनाने की कला भी बखूभी जानते हैं वह जहां भाजपा और संघ परिवार पर रोजाना नए तरीके से निशाना साधते हैं वहीं सरकार खासकर केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी आड़े हाथों लेते रहते हैं। पहले उन्होंने नक्सल समस्या से निबटने की रणनीति को लेकर चिदम्बरम की कार्यशैली पर सवाल उठाए तो अब मौत की सजा पाए कैदियों की अपील पर एक समय सीमा में निर्णय करने की बात कह कर अफजल गुरु और अजमल कसाब की फांसी में जानबूझकर देरी करने के भाजपा के आरोपों को भी हवा दी। ऐसे बयानों से दिग्विजय कभी कभार खुद अपनी ही पार्टी को भी परेशानी में डाल देते हैं लेकिन वह जो ‘लक्ष्य’ लेकर चल रहे हैं उसे देखते हुए पार्टी आलाकमान भी उनके विरुद्ध सख्त रुख अख्तियार नहीं करता क्योंकि उसे पता है कि जो काम वर्षों से कोई कांग्रेस नेता नहीं कर पाया वह मात्र कुछ महीनों में दिग्विजय ने कर दिखाया है। यह कार्य है संघ को आतंकवाद से जोड़ने का। दिग्विजय अपने बयानों के जरिए संघ को संदिग्ध बना देना चाहते हैं और इसके लिए ऐसे बयान देते हैं जिससे कि लोगों का ध्यान आकर्षित हो।

बहरहाल, अब देखना यह है कि दिग्विजय की सियासत अभी और क्या गुल खिलाती है या और क्या क्या विवाद खड़े करती है लेकिन इतना तो है ही कि उन्होंने संघ के सामने कई दशकों में पहली बार कोई बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।

जय हिन्द, जय हिन्दी

नीरज कुमार दुबे

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