View My Stats

Friday, 16 January 2009

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात


मुंबई में हुये आतंकवादी हमलों के बाद भारत के कड़े रुख को देखकर लगा था कि आतंकवाद के खिलाफ इस बार वाकई निर्णायक कार्रवाई की जायेगी। लगभग डेढ़ महीने तक भारत-पाक के बीच वाक्युध्द हुआ भी लेकिन अब ऐसा लगता है कि सरकार कड़े रुख की मुद्रा छोड़ आराम की मुद्रा में आ गई है। सरकार के दो वरिष्ठ मंत्रियों ने दो दिनों में ऐसे संकेत दिये हैं जिससे प्रतीत होता है कि आतंकवाद के खिलाफ हमारी लड़ाई अब कमजोर पड़ती जा रही है।

पहला संकेत दिया विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने जिन्होंने पाकिस्तान से मुंबई हमले के दोषियों और अन्य आतंकवादियों को सौंपने की मांग पर कुछ नरमी लाते हुए कहा कि यदि उस देश में ऐसे लोगों पर मुकदमा चलाया जाता है तो भारत को कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह छद्म मुकदमा नहीं होना चाहिए और इसे पारदर्शी ढंग से चलाया जाना चाहिए। विदेश मंत्री पाकिस्तान से यह उम्मीद कैसे कर रहे हैं कि वह इस बारे में सही जानकारी देगा? विदेश मंत्री के इस बयान से भारत के रुख में नरमी का संकेत मिलता है क्योंकि अभी तक कहा जा रहा था कि भगोड़ों को सौंपा जाए ताकि भारत में उन पर मुकदमा चलाया जा सके। यही नहीं भारत ने इस मांग को लेकर वैश्विक स्तर पर अभियान भी चलाया था अब अचानक ही इस मांग से पीछे हटने से क्या सही संदेश जायेगा?

दूसरा संकेत दिया गृहमंत्री पी। चिदम्बरम ने, जिन्होंने अपना पद संभालते के साथ ही जिस तेजी के साथ राष्ट्रीय जांच एजेंसी और आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कानून संसद से पारित कराकर यह संदेश देने का प्रयास किया था कि आतंकवाद की अब खैर नहीं। उन्होंने उक्त कार्यों को हुये महीना भर भी नहीं गुजरा कि कह दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ कड़े कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार के लिए वह तैयार हैं। सभी मुख्यमंत्रियों एवं उप राज्यपालों को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि यदि इन कानूनों में कोई परिवर्तन करने की जरूरत महसूस हुई तो हम कभी भी प्रावधानों पर पुनर्विचार कर सकते हैं और संसद के अगले सत्र में बदलाव रख सकते हैं। उन्होंने यह बयान देकर सही नहीं किया क्योंकि इससे देश के सॉफ्ट स्टेट होने की धारणा एक बार फिर बलवती हुई है। जब हम संसद से सर्वसम्मति से पारित किये गये कानून पर ही दृढ़ नहीं रह पायेंगे तो आतंकवाद के खिलाफ हमारी दृढ़ता कैसे कायम रह पायेगी।

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार की इच्छाशक्ति में कमी क्यों आई, यह विश्लेषण का विषय है। इस समय हमें पाकिस्तान पर और अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाने की जरूरत है लिहाजा आंतरिक मतभेदों को दरकिनार कर जनमानस के अनुरूप आतंकवाद और उसके पोषकों के खिलाफ सख्त रूख बनाये रखना चाहिये। इसी से यह लड़ाई अपनी परिणति को प्राप्त होगी।

नीरज कुमार दुबे

No comments: