लश्कर-ए-तय्यबा के संस्थापक हाफिज सईद के सिर पर अमेरिका की ओर से एक करोड़ डालर का इनाम घोषित करने के कदम से भारत को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि अमेरिका भले यह कह रहा हो कि यह इनाम मुख्य रूप से 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में सइर्द की भूमिका के लिए रखा गया है और वह उसे सजा मिलते देखना चाहता है, लेकिन असलियत यह है कि अमेरिका ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि सईद और उसके आतंकी संगठन पाकिस्तान पर अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में नाटो के लिए सप्लाई मार्ग खोले जाने की राह में रोड़ा बने हुए हैं।
यदि अमेरिका को मुंबई हमले का इतना ही दर्द है तो उस घटना के लगभग तीन साल बाद उसे साजिशकर्ताओं को सबक सिखाने की सुध क्यों आई? अमेरिका ने जो इनाम घोषित किया है उसकी टाइमिंग देखने से तो यही प्रतीत होता है कि उसने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। एक तो इससे पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनेगा दूसरा भारत की सरकार अमेरिका के इस कदम से खुश हो जाएगी तथा अमेरिकी कंपनियों को भारत से और ठेके या फिर लाभ के करार करने के अवसर मिलेंगे। दूसरा अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव भी आसन्न हैं, इस कदम के पीछे घरेलू राजनीतिक कारण ही ज्यादा नजर आ रहे हैं ताकि राष्ट्रपति बराक ओबामा के विरोधियों को यह कहने का मौका नहीं मिले कि अफगानिस्तान में अमेरिका नीत नाटो सेना की बुनियादी आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पा रही हैं।
यह बात सब जानते हैं कि ओसामा बिन लादेन को ढूंढने में अमेरिका को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी, उसने अपनी खुफिया एजेंसियों और उपग्रहों के जरिए वर्षों बाद आखिरकार उसे ढूंढ निकाला था। लगभग ऐसी ही मेहनत अमेरिकी बलों ने सद्दाम हुसैन को ढूंढने में भी की थी लेकिन हाफिज सईद तो वर्षों से सबके सामने है। अमेरिकी न्यूज चैनलों और खबरिया वेबसाइटों पर न जाने कितनी बार उसकी रैलियों और भाषणों की खबरें प्रसारित, प्रकाशित हुई हैं। खुद पाकिस्तान में मौजूद अमेरिकी राजदूत और अन्य राजनयिक सईद की गतिविधियों से नित रूबरू होते रहते होंगे। सीआईए जैसी खुफिया एजेंसी भी यह न जानती हो कि सईद कहां पर है, इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा। अमेरिका यदि चाहे तो सईद का भी वही अंजाम हो सकता है जोकि ओसामा का हुआ क्योंकि अमेरिकी कानून इस बात की इजाजत देते हैं कि देश के दुश्मन को कहीं भी मार गिराने का अधिकार सुरक्षा बलों को है। यदि अमेरिका सचमुच सईद को आतंकवाद का सरगना मानता है तो इनाम घोषित करने की बजाय उस पर सीधे कार्रवाई ही करनी चाहिए थी। इनाम तो उस पर घोषित किया जाता है जिसका कोई अता पता न हो दूसरी ओर सईद खुलेआम अमेरिका को कार्रवाई की चुनौती देते हुए कह रहा है कि हम गुफा में छिप कर नहीं बैठे।
बहरहाल, अब जब इनाम घोषित कर ही दिया गया है तो पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जाना चाहिए और सईद को गिरफ्तार करना चाहिए। लेकिन लगता है सारा मामला कागजी प्रक्रियाओं में ही उलझ कर रह जाने वाला है क्योंकि पाकिस्तानी गृह मंत्री रहमान मलिक का कहना है, ‘‘मुझे मीडिया से जानकारी मिली कि उसके सर पर इनाम रखा गया है। हमें अमेरिका से या किसी अन्य राजनयिक माध्यम से कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। इस विषय पर हमें मीडिया से जानकारी प्राप्त हुई है।‘‘ यह सच है कि पाकिस्तान सरकार किसी भी हालत में सईद को अमेरिका को नहीं सौंपेगी क्योंकि वह जानती है कि उसके द्वारा बनाये गये संगठनों का देश में व्यापक आधार है और देशभर में अमेरिका के खिलाफ माहौल के बीच सईद के खिलाफ कार्रवाई से कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है।
यह बात सभी जानते हैं कि सईद को सरकार की ओर से पूरी शह मिलती रही है और उसके द्वारा प्रदान किये गये सुरक्षाकर्मी भी दिन रात सईद की सुरक्षा में लगे रहते हैं। सईद 2008 के मुंबई हमलों के आलोक में हल्का झटका खाने के बाद पाकिस्तान की जिहादी राजनीति में फिर से अहम किरदार बनकर उभरा है। अमेरिका ने उसका नाम दुनिया के पांच सबसे वांछित आतंकवादियों की सूची में भले अब डाला हो लेकिन भारत के लिए वह पांच सबसे वांछितों की सूची में बहुत पहले से रहा है। मुंबई आतंकी हमलों के बाद पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दबाव में सईद को नजरबंद किया गया था लेकिन पिछले साल इस आतंकी ने जोरदार वापसी की और डेफा ए पाकिस्तान परिषद (डीपीसी) नामक छद्म संगठन के तहत 40 कट्टर और चरमपंथी संगठनों को एक किया। पिछले साल नवंबर में नाटो के एक हवाई हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने के बाद अमेरिका विरोधी भावनाओं को भुनाते हुए डीपीसी ने पूरे देश में बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की हैं। डीपीसी में कुख्यात प्रतिबंधित संगठन सिपाह ए सहाबा भी शामिल है। इन सभी आयोजनों में सईद जैसे आतंकियों ने अमेरिका और भारत को निशाना बनाते हुए जिहाद का नारा बुलंद किया।
मुंबई हमलों के बाद एक साल से ज्यादा समय तक सईद ने अपनी गतिविधियां कम रखीं और कुछ समय तक अधिकारियों ने उसके रैलियों में भाग लेने पर रोक लगा दी। हालांकि 2011 में उसने सार्वजनिक मंचों पर कदम रखा और पिछले साल 11 अप्रैल को कश्मीरी नेता मौलवी शौकत अहमद शाह के जनाजे में शामिल हुआ। इसके बाद, सईद ने सार्वजनिक बैठकों में पीएमएल-एन अध्यक्ष रजा जफरूल हक और पूर्व विदेश मंत्री जैसे शीर्ष राजनीतिकों के साथ मंच साक्षा किया। सईद की इन राजनीतिकों के साथ मेलजोल राजनीतक पार्टियों की ओर से उसकी स्वीकार्यता को दिखाता है। जमात.उद.दावा का पाकिस्तान भर में बहुत बड़ा नेटवर्क है और 2005 के भूकंप, 2010 के बाढ़ के बाद राहत अभियान चलाकर उसने लोगों के बीच अपनी अच्छी साख बनाने की कोशिश भी की।
बहरहाल, अब यह साफ है कि हाफिज सईद को सबसे वांछित व्यक्तियों की सूची में रखने का समय संदिग्ध है क्योंकि पाकिस्तान अमेरिकी संबंध अभी बदतर स्थिति में हैं। यह पाकिस्तानी सेना पर दबाव डालने का अमेरिकी रास्ता हो सकता है। अब वाकई बड़ी हास्यास्पद स्थिति है कि इस तथ्य के बावजूद सईद के सर पर इनामी राशि रखी गई है कि वह खुलेआम पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में सार्वजनिक रैलियां करता है।
जय हिंद, जय हिंदी
नीरज कुमार दुबे